छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में डीजे के ध्वनि प्रदूषण पर दर्ज स्वतः संज्ञान जनहित याचिका और इसी से संबंधित लेजर बीम लाइट्स के इस्तेमाल को लेकर हस्तक्षेप याचिका पर सुनवाई हुई। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बी.डी. गुरु की पीठ ने इस मसले पर चिंता जताई।
कोर्ट ने कहा कि तेज आवाज और लेजर लाइट्स लोगों की जान-माल के लिए हानिकारक हैं। किसी की आंखें जा रही हैं, किसी का दिल धड़कना बंद हो रहा है, और लोग अपना त्यौहार मनाकर बेखबर चले जा रहे हैं।
सुनवाई के दौरान रायपुर के कान, नाक और गला विशेषज्ञ डॉ. राकेश गुप्ता ने हस्तक्षेप याचिका दायर की। उन्होंने गणेश विसर्जन के दौरान डीजे से निकलने वाली लेजर बीम लाइट्स की तस्वीरें कोर्ट के सामने रखीं, जिसमें दिखाया गया कि किस तरह से इन लाइट्स का इस्तेमाल हो रहा था। इस पर सरकार की ओर से कोर्ट को सूचित किया गया कि लेजर लाइट्स के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
याचिकाकर्ता डॉ. गुप्ता ने कोर्ट में कहा कि डीजे के खिलाफ कार्रवाई सिर्फ कोलाहल अधिनियम के तहत की जाती है, जिसमें मामूली 1000 रुपये जुर्माना लेकर छोड़ दिया जाता है। जबकि नॉइस रूल्स के तहत सख्त सजा और जुर्माने का प्रावधान है। सरकारी पक्ष ने जवाब दिया कि दूसरी बार डीजे बजाते पाए जाने पर उसे जब्त कर लिया जाता है।
कोर्ट ने कहा कि ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ सिर्फ कानून ही नहीं, बल्कि जन जागरूकता भी बेहद जरूरी है। हर व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह इस मामले में सहयोग करे। कोर्ट ने रायपुर कलेक्टर को निर्देश दिया कि वे शपथ पत्र के साथ व्यक्तिगत रूप से रिपोर्ट पेश करें। मामले की अगली सुनवाई 28 नवंबर को होगी।
एक डीजे ऑपरेटर ने भी कोर्ट में हस्तक्षेप याचिका दायर कर आरोप लगाया कि पुलिस मोटर विहिकल एक्ट के तहत अवैध रूप से चालान करके पैसे वसूल रही है। सरकार की ओर से इसका खंडन करते हुए कहा गया कि ऐसी कोई जानकारी नहीं है और कानून का सख्ती से पालन किया जा रहा है।