बिलासपुर । कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाने के लिए कैदियों की रिहाई के लिए हाईपावर कमेटी ने अपनी दूसरी बैठक में कुछ और रियायतें दी हैं, जिसके चलते प्रदेश के 1162 और कैदियों को पैरोल अथवा जमानत पर छोड़ने का रास्ता साफ हो गया है। हाईपावर कमेटी ने सभी जिला न्यायाधीशों और जिला विधिक सहायता अधिकारियों को इस दिशा में कार्रवाई करने के लिए कहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने बीते माह स्वतः संज्ञान लेते हुए देशभर के न्यायालयों और विधिक सेवा प्राधिकरणों से कहा था कि जेलों में क्षमता से अधिक कैदी निरुद्ध हैं। इन्हें कम किया जाये ताकि कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने में मदद मिले। इसके बाद छत्तीसगढ़ में राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष जस्टिस प्रशांत मिश्रा के नेतृत्व में हाईपावर समिति गठित की गई। इस समिति में प्रदेश सरकार के अतिरिक्त मुख्य सचिव सुब्रत साहू, और अतिरिक्त जेल महानिदेशक संजय पिल्ले भी शामिल थे। इस बैठक में तय किया गया था कि 7 वर्ष से कम सजा वाले मामलों में 3 माह से अधिक अवधि तक जेलों में बिता चुके सजायाफ्ता कैदियों को पैरोल पर छोड़ दिया जाये। इसके अलावा ऐसे ही 7 साल से कम की अधिकतम सजा वाले मामलों में विचाराधीन कैदियों को जमानत पर रिहा किया जाये। पैरोल व जमानत की सुविधा 30 अप्रैल तक दिये जाने का दिशा निर्देश दिया गया। ऐसे कैदियों के आवेदनों की सुनवाई जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों में नियुक्त गये विशेष जज करें। ये जज जिला न्यायाधीश द्वारा नियुक्त किये जायें।

कैदियों की रिहाई के मामले में हुई प्रगति की समीक्षा के लिए दो अप्रैल को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये इस हाईपावर कमेटी की दुबारा बैठक हुई, जिसमें यह पाया गया कि उपरोक्त सिफारिशों के मुताबिक अंतरिम जमानत का लाभ केवल 350 कैदियों को मिला है और केवल 120 कैदी पैरोल पर छोड़े जा सके हैं।

हाईपावर कमेटी के समक्ष पहुंची रिपोर्ट में पाया गया है कि कुल 1162 सजायाफ्ता या विचाराधीन कैदी ऐसे हैं जो जेलों में तीन माह से कम समय से हैं। इनमें से 622 कैदी ऐसे हैं जो एक माह से कम समय से निरुद्ध हैं। 294 ऐसे बंदी हैं जो एक माह से ज्यादा किन्तु दो माह से कम समय से जेलों में है। इसके अलावा 246 ऐसे हैं जो जेलों में दो माह से तीन माह के बीच की अवधि से जेलों में हैं।

राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के सदस्य सचिव सिद्धार्थ अग्रवाल ने जिला न्यायालयों को भेजे गये पत्र में बताया है कि हाईपावर कमेटी की दूसरी बैठक में इस पर विचार किया गया जिसके बाद कैदियों की रिहाई के लिए शर्तों में कुछ और ढील देने का फैसला लिया गया है। ऐसे विचाराधीन पुरुष बंदी  जो जेल में दो तीन सप्ताह या अधिक दिनों से जेल में हैं या ऐसी महिला विचाराधीन बंदी जो दो सप्ताह से अधिक समय से जेल में हैं उन्हें भी राहत दी जाये। पहली बैठक में तय किया गया था कि तीन माह या उससे अधिक समय जेलों में बिताने वाले विचाराधीन बंदी ही जमानत पर रिहा होने का लाभ ले सकेंगे।

हाईपावर कमेटी की पहली बैठक में लिये गये बाकी फैसलों पर कोई बदलाव नहीं किया गया है जिसके अनुसार विचाराधीन या सजायाफ्ता कैदी को 7 साल से कम सजा वाले मामलो में निरुद्ध रखा गया है और उसका छत्तीसगढ़ का निवासी होना जरूरी है। फ्राड और छेड़छाड़ के मामलों में शामिल अभियुक्तों की भी रिहाई नहीं की जायेगी।

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