बिलासपुर। कानन पेंडारी चिड़ियाघर में हुए नर और मादा नीलगायों के बीच खूनी संघर्ष में 6 वर्षीय मादा नीलगाय की मौत हो गई। कानन पेंडारी में चिकित्सा अधिकारी व डीएफओ की उपस्थिति में उसका पोस्टमार्टम किया गया और शव कानन पेंडारी जू में ही जलाया गया। अंदरूनी चोटें एवं रक्त स्राव के कारण मौत होने की बात कही गई है।
कानन पेंडारी जू में बाहरसिंगा, चीतल जैसे जानवरों की लगातार बढ़ती संख्या के बीच पर्याप्त व्यवस्था न होने के कारण उनके बीच अक्सर संघर्ष हो रहा है। इसके बावजूद चिड़ियाघर प्रशासन की ओर से कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं की गई। इनकी देखभाल के लिए महज एक केयरटेकर लगाया हुआ है। हालात के विकल्पों पर काम करने की बजाए चिड़ियाघर प्रशासन यह कह रहा है कि बाड़े में चीतलों की संख्या बढ़ गई है, लेकिन इन्हें ले जाकर जंगल में नहीं छोड़ा जा रहा है। शुक्रवार की सुबह बजे नर और मादा नीलगाय के बीच संघर्ष हो गया। इस समय तक अफसर तो नहीं पहुंचते लेकिन जू कीपर से लेकर अन्य कर्मचारी ड्यूटी पर आ जाते हैं। सभी जू कीपर केज का जायजा लेने के साथ- साथ वन्यप्राणियों को भी देखते हैं। इसी बीच जब नीलगाय के केज का जू कीपर पहुंचा तो देखा कि आपस में भिड़ंत हो रही है। वे केज के अंदर पहुंचे तब तक मादा नीलगाय को घायल कर दिया था। बाद में उसकी उपचार के दौरान मौत हो गई, जिसे कानन जू में ही पीएम के बाद जलाया गया है।
इस घटना की मुख्य वजह केज में क्षमता से अधिक बारहसिंगा का होना है। वहीं केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण का नियम है कि जू में 5० से अधिक चीतल या बारहसिंगा नहीं रखना है। इससे अधिक संख्या होने पर उसकी शिफ्टिंग का आदेश है। लेकिन जू में सालों से शिफ्टिंग नहीं हुई है। इसके चलते लगातार संख्या में इजाफा हो रहा है।
12 अक्टूबर 2०19 को आपसी झगड़े में एक चीतल ने मौके पर ही दम तोड़ दिया था। दूसरे घायल का 8 दिनों तक इलाज चला लेकिन कानन के डॉक्टर उसकी जान नहीं बचा पाए। 2० अक्टूबर को दूसरे नर चीतल की भी जान चली गई। एक नर बंदर भी लकवा की बीमारी से लड़ रहा है। चिड़ियाघर में एक्सपर्ट डॉक्टर के नहीं होने के कारण भी वन्यजीवों की मौत हो रही है। जो डॉक्टर है। वे घायल वन्यजीवों को बचा नहीं पा रहे है।

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