पर्यावरण के लिए घातक प्लास्टिक ऑफ पेरिस की मूर्तियां रोक के बावजूद शहर में भारी तादात में दूसरे प्रदेशों से बिकने आ रही है। इनका मार्केट इतना बड़ा है कि मिट्टी की मूर्तियां बनाने वाले कुम्हारों के सामने रोजगार का संकट खड़ा हो गया है। त्यौहारों का सीजन आने के पहले आज कलेक्टरोरेट पहुंची महिलाओं ने जन-दर्शन में मांग की कि या तो पीओपी की मूर्तियों पर प्रभावी रोक लगाई जाए अथवा उनके लिए दूसरे रोजगार की व्यवस्था की जाए।
अपने ज्ञापन में इन्होंने बताया है कि बाहरी कारीगर पीओपी की गणेश जी, दुर्गा माता और दीपपर्व पर इस्तेमाल किए जाने वाले दीयों की बिक्री कर रहे हैं। ये चंदिया, खड़कपुर, कोलकाता आदि जगहों से आते हैं। सवाल यह है कि क्या उन स्थानों पर ये त्यौहार नहीं मनाए जाते जो यहां आकर इसकी बिक्री कर बेखौफ चले जाते हैंम।
कुम्हार समाज द्वारा मिट्टी की मूर्तियां बनाई जाती है जो पानी में घुल जाती हैं, जबकि पीओपी मूर्तियां घुलती नहीं और पानी को प्रदूषित करती हैं। इसलिए कोर्ट और सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगा रखा है। अब ये चालाक पीओपी विक्रेता पीओपी मूर्तियों के ऊपर मिट्टी की लेप लगाकर बेचने लगे हैं।
ज्ञापन में बताया गया है कि तोरवा मे कुम्हारों का करीब 500 परिवार है, जो मिट्टी की मूर्ति बनाने का काम करता है। इनको मिट्टी का सामान बनाने के लिए सरकार ने उपकरण भी दे रखा है, पर पीओपी मूर्तियों के कारण उनके पास काम नहीं है। बिलासपुर शहर में उनके पास न तो स्थायी दुकान है न बैठने के लिए कोई स्थायी बाजार दिया गया है।
प्रजापति समाज ने मांग की है कि बाहरी व्यक्तियों द्वारा लाकर बेची जा रही पीओपी मूर्तियों पर तत्काल पाबंदी लगाई जाए ताकि स्थानीय कुम्हार जो पर्यावरण का ध्यान रखते हुए मिट्टी की मूर्तियां और दीये बना रहे हैं वे अपने परिवार का ठीक तरह से पालन-पोषण कर सकें।