विधायक ने लिखा सीएम को पत्र- एक भी अनुमति न दें, नदी, पर्यावरण और जंगल को बचायें
बिलासपुर। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के अधीन कार्य करने वाली संस्था भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद (आईसीएफआरई) ने अपनी रिपोर्ट में माना है कि हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोयला खदानों को अनुमति देने से यहां के वन, वनस्पति, वन्य प्राणी समूह और पक्षियों के अस्तित्व पर संकट खड़ा हो जायेगा, जिसकी भरपाई कर पाना एक बड़ी चुनौती होगी। इसके विपरीत इसी रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन 4 खदानों को मंजूरी देने की प्रक्रिया अंतिम चरण में है या प्रारंभ हो चुकी है उन्हें शुरू कर दिया जाए। इस रिपोर्ट के आधार पर प्रदेश के वरिष्ठ विधायक धर्मजीत सिंह ठाकुर ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को पत्र लिखकर मांग की है कि पूरे हसदेव अरण्य को संरक्षित करने की आवश्यकता है और इस क्षेत्र के किसी भी हिस्से में कोयला खनन की अनुमति न दी जाए।
आईसीएफआरई की रिपोर्ट के उस हिस्से को पर्यावरण कार्यकर्ताओं और कानूनी विशेषज्ञों की कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है जिसमें पर्याप्त सुरक्षा उपायों के साथ क्षेत्र में 4 कोयला खदानों की अनुमति देने की सिफारिश की गई है। इस अध्ययन में कहा गया है कि तारा, परसा, पीईकेबी और केते एक्सटेंशन कोयला खदान या तो पहले से चालू हो चुके हैं या फिर मंजूरी मिलने की प्रक्रिया अंतिम चरण में है।
विवादित यह है कि इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों के साथ इन चार कोयला खदानों को उत्खनन की अनुमति देने पर विचार किया जा सकता है जिसमें जैव विविधता और जल संरक्षण के लिए भी उपयुक्त उपायों का पालन करना आवश्यक होगा। इन चार कोयला ब्लॉकों की कुल सीमा लगभग 80.95 वर्ग किलोमीटर है। तर्क यह दिया गया है ये चार ब्लॉक हसदेव अरण्य के लगभग 5 प्रतिशत में ही है।
दूसरी ओर अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि शेष में खनन को अनुमति देने से पूरे क्षेत्र के पर्यावरण एवं बायोडायवर्सिटी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। आईसीएफआरई ने कहा है कि हसदेव अरण्य जंगल में निवास करने वाले 90 फीसदी से अधिक परिवार अपनी आजीविका के लिए वनोपज और जंगल की भूमि पर होने वाली खेती पर निर्भर हैं। यह वन क्षेत्र अपनी प्रकृति के अनुसार हाथियों के लिए उपयुक्त आहार और रहवास हो सकता है जिसके लिए लेमरू हाथी परियोजना प्रस्तावित भी है।
आईसीएफआरई कि यह रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश से जुड़ी है जिसमें एनजीटी के आदेश पर स्थगन दिया गया था। क्षेत्र में राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को दी गई कोयला खनन की अनुमति को एनजीटी ने अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव की याचिका पर रद्द किया था। श्रीवास्तव का कहना है कि आईसीएफआरई को 4 खदानों को संचालित करने की सिफारिश करने का कोई औचित्य नहीं है क्योंकि उसे यह काम कोर्ट ने नहीं सौंपा था। इसका फैसला राज्य को लेना है।
आईसीएफआरई की पूरी रिपोर्ट अभी सार्वजनिक नहीं की गई है लेकिन इसके कुछ हिस्से उजागर हुए हैं, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि हसदेव अरण्य में अन्य 14 खदानों को अनुमति देने से भूमि उपयोग में परिवर्तन करना होगा, जो पर्यावरण, वनों के विकास, वन के घनत्व, वन के प्रकार और वन के विखंडन पर नकारात्मक प्रभाव डालेगा।
विधायक ने लिखी सीएम को चिट्ठी
छत्तीसगढ़ के एक वरिष्ठ विधायक धर्मजीत सिंह ठाकुर ने आईसीएफआरई रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को पत्र लिखकर मांग की है कि पूरे हसदेव अरण्य क्षेत्र को संरक्षित करने के लिए सरकार जरूरी कदम उठाए। इस क्षेत्र में किसी भी प्रकार के कोयला उत्खनन को अनुमति न दी जाए।
गुरुवार को लिखे गए अपने पत्र में विधायक ने कहा है कि भारत सरकार की संस्था आईसीएफआरई ने अपनी बायोडायवर्सिटी स्टडी रिपोर्ट भारत सरकार को प्रस्तुत की है। रिपोर्ट पूरी तरह जारी नहीं हुई है पर उसके कुछ अंश उपलब्ध है। इसमें मोटे तौर पर यह बताया गया है कि हसदेव-अरण्य क्षेत्र का भूमि उपयोग बदलकर खनन की अनुमति देने से वन क्षेत्र के आकार, घनत्व, प्रकार और उसके आच्छादन पर ऋणात्मक प्रभाव पड़ेगा। इस वन क्षेत्र को खंडित करने से वाइल्डलाइफ कॉरिडोर संपर्क भी कम हो जाएगा। पूरे वन क्षेत्र का माइक्रो क्लाइमेंट प्रभावित होगा, साथ ही बाहरी प्रजातियों की वनस्पति का प्रवेश इस क्षेत्र में होगा, जो खतरनाक है।
कोयला खदानों की आधारभूत संरचना के विकास व खनन क्रियाकलाप से वन्य प्राणी पर्यावास की गुणवत्ता विखंडित होगी और इस से निपटना बहुत बड़ी चुनौती होगी। क्षेत्र हाथियों का पर्यावास है, जो शायद खनन प्रारंभ होने के बाद इन क्षेत्रों में दिखाई नहीं देंगे। इसी वजह से खनन क्षेत्र के जुड़े हुए इलाकों में मानव हाथी द्वंद अप्रत्याशित रूप से बढ़ेगा, जिससे प्रदेश का पूरा भू-भाग प्रभावित होगा।
विधायक ने सामाजिक आर्थिक प्रभाव को लेकर भी अपने पत्र में आगाह करते हुए कहा है कि क्षेत्र के 90 प्रतिशत से अधिक रहवासी खेती या वनोपज पर जीवन यापन के लिए आश्रित हैं। यह पूरा वन क्षेत्र उन्हें जल और पर्यावरण उपलब्ध कराता है। अन्य सहायक गतिविधियां से उनके जीवन यापन का आधार है। खनन से पड़ने वाला सम्मिलित प्रभाव पूरे रहवासी समुदाय के जीवन-यापन के साधनों को नष्ट कर देगा और उनकी पहचान और संस्कृति पर गंभीर प्रभाव डालेगा।
पत्र में कहा गया है कि वनाच्छादित भू-भाग पर खनन होने से जिओ मार्फोलॉजिकल और हाइड्रोलॉजिकल परिवर्तन नदियों के प्रवाह क्षेत्र में विपरीत असर डालेगा। कोल ब्लॉक क्षेत्र की अधिकतम जलधाराएं प्राथमिक एवं द्वितीयक श्रेणी की हैं। खनन के लिये जल प्रवाह में बाधा डाली जायेगी, जो न केवल इस क्षेत्र के निवासियों बल्कि राज्य के लिये गंभीर परिस्थितियां उत्पन्न करेंगीं।
विधायक सिंह ने कहा कि उपरोक्त बिंदुओं यह स्पष्ट होता है कि पूरे हसदेव और अन्य क्षेत्र में कोयला खदान होने से पूरे क्षेत्र में सुधार ना हो सकने वाला नुकसान होगा। उन्होंने कहा कि अत्यंत खेद का विषय है कि उपरोक्त जानकारी पूरे हसदेव क्षेत्र के लोगों द्वारा देने के बावजूद आईसीएफआरई का यह कहा गया है कि क्षेत्र के चार कोयला ब्लॉक में खनन की अनुमति केवल इसलिए दी जा सकती है क्योंकि यहां पर या तो खनन प्रारंभ हो चुका है अथवा खनन की अनुमति देने की प्रक्रिया अग्रिम स्तर पर है। ऐसी राय रखना आई सी एफआरई के दायित्व में भी नहीं है। यह तथ्य में नहीं भूलना चाहिए कि इस अध्ययन का खर्च राजस्थान विद्युत निगम ने उठाया है। सिफारिश के 4 में से 3 ब्लॉक राजस्थान विद्युत निगम को ही मिले हैं। इसके खनन के लिये अदानी ने अनुबंध कर रखा है। जानकारी के अनुसार आईसीएफआरई की टीम उदयपुर (सरगुजा) प्रवास के दौरान उनके ही गेस्ट हाउस में रुका करती थी और तथ्यों के विपरीत अनुशंसा करने के पीछे अन्य कारण हो सकते हैं।
पत्र में विधायक धर्मजीत सिंह ने कहा है कि वास्तव में पीकेईबी खदान के अलावा अन्य 3 ब्लॉक में खनन शुरू नहीं हुआ है और यह अब तक खनन से अछूते है। इसके अलावा महत्वपूर्ण यह है कि पूरे देश के 602 कोल ब्लॉक के अंदर के इस क्षेत्र के तारा में दूसरा सबसे घना जंगल पाया गया है। यही नहीं, केते एक्सटेंशन कोल ब्लॉक का 98 प्रतिशत हिस्सा घना जंगल है। 14 ब्लॉक भी गेज नदी का जल ग्रहण क्षेत्र ही नहीं बल्कि आगे जाकर हसदेव में मिल जाने के कारण हसदेव बांगो का भी जल ग्रहण क्षेत्र है। यह भी उल्लेखनीय है कि राजस्थान विद्युत मंडल को आवंटित और अडानी समूह द्वारा संचालित पीकेईबी खदान में पर्यावरण अनुमति संबंधी शर्तों का उल्लंघन किया जा रहा है। घाटदर्रा गांव का वन अधिकार समाप्त करने का मामला भी न्यायालय में विचाराधीन है। ऐसे में इन 4 ब्लॉक में आईसीएफआरई के द्वारा अनुमति पर विचार करने की सिफारिश समझ से परे है। उक्त चार में से तीन कोल ब्लॉक अडानी के पास है। उपरोक्त परिस्थितियों को देखते हुए आप से अनुरोध है कि अन्य 14 ब्लॉक ही नहीं सभी में कोयला खदान की अनुमति रद्द की जाये। सिर्फ एक कोयला ब्लॉक जिसमें खनन चालू है, अनुमति दी जा सकती है।
विधायक ने अपने पत्र में कहा है कि ऐसा करने से राज्य या देश में कोयले की आपूर्ति में कोई कमी नहीं आने वाली है क्योंकि जहां खनन शुरू नहीं हुआ है, 5 हजार मिलियन टन कोयला भंडार ही है जो छत्तीसगढ़ राज्य के कुल भंडार के केवल 10 प्रतिशत और देश में उपलब्ध कुल कोयला भंडार के केवल 2 प्रतिशत से भी कम है। हमें इस घने जंगल को समाप्त कर कोयला उत्पादन की आवश्यकता बिल्कुल नहीं है।