गुरु पूर्णिमा, भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो श्रद्धा, आस्था और गुरु-शिष्य परंपरा का प्रतीक है। यह पर्व आषाढ़ मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है और इसे महर्षि वेद व्यास की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है, जिन्होंने महाभारत और कई पुराणों की रचना की। वेद व्यास को चारों वेदों का संकलनकर्ता माना जाता है, इसलिए उन्हें आदिगुरु का स्थान दिया गया है। गुरु पूर्णिमा का पर्व महाभारत के रचयिता महर्षि वेद व्यास को समर्पित है। वेद व्यास को आदि गुरु माना जाता है। इस कारण, गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है।

पुराणों में गुरु पूर्णिमा

भारतीय पुराणों और शास्त्रों में गुरु का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। गुरु को ईश्वर से भी ऊंचा स्थान दिया गया है, क्योंकि गुरु ही हमें ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग दिखाते हैं। गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समकक्ष माना गया है। ‘गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरु साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः।।’ इस श्लोक के माध्यम से गुरु की महिमा का बखान किया गया है। गुरु को साक्षात् परब्रह्म माना गया है, जो ज्ञान का सृजन, पालन और संहार करते हैं।

गुरु का महत्व शास्त्रों में स्पष्ट रूप से उल्लेखित है:

  • महाभारत: गुरु द्रोणाचार्य और उनके शिष्यों की कथा गुरु-शिष्य परंपरा का अद्भुत उदाहरण है। अर्जुन की सफलता उनके गुरु द्रोणाचार्य के मार्गदर्शन का परिणाम थी।
  • श्रीमद्भगवद्गीता: भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गुरु के रूप में उपदेश दिया, जिसने अर्जुन के जीवन को नया दृष्टिकोण और दिशा दी।
  • पुराण: विभिन्न पुराणों में भी गुरु की महिमा का विस्तार से वर्णन मिलता है। वेद व्यास द्वारा रचित महाभारत और 18 पुराणों में गुरु-शिष्य परंपरा की महत्ता का वर्णन किया गया है।

गुरु पूर्णिमा का धार्मिक महत्व

गुरु पूर्णिमा का धार्मिक महत्व अत्यधिक है। इस दिन शिष्य अपने गुरु की पूजा करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यह पर्व साधना, तपस्या और ज्ञान प्राप्ति का प्रतीक है। गुरु का मार्गदर्शन शिष्य को अज्ञानता से ज्ञान की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है। गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश का स्वरूप माना गया है:

  • गुरु ब्रह्मा: गुरु सृजनकर्ता हैं, जो शिष्य के जीवन को ज्ञान से संवारते हैं।
  • गुरु विष्णु: गुरु पालनकर्ता हैं, जो शिष्य के जीवन में सद्गुणों का विकास करते हैं।
  • गुरु महेश: गुरु संहारकर्ता हैं, जो शिष्य के अज्ञान और दोषों का नाश करते हैं।

आधुनिक समाज में गुरु पूर्णिमा का महत्व

आधुनिक समाज में भी गुरु पूर्णिमा का महत्व कम नहीं हुआ है। शिक्षा और ज्ञान के क्षेत्र में गुरु का स्थान आज भी अति महत्वपूर्ण है। हालांकि, आधुनिक युग में शिक्षा का स्वरूप बदल गया है, लेकिन गुरु-शिष्य का संबंध और उसकी महत्ता आज भी बनी हुई है। आधुनिक समाज में गुरु पूर्णिमा के महत्व को निम्नलिखित बिंदुओं से समझा जा सकता है:

शिक्षा के क्षेत्र में

गुरु पूर्णिमा के अवसर पर विभिन्न शिक्षण संस्थानों में विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। विद्यार्थियों द्वारा अपने शिक्षकों का सम्मान किया जाता है और उनके मार्गदर्शन के प्रति आभार व्यक्त किया जाता है। यह दिन शिक्षकों और विद्यार्थियों के बीच संबंध को मजबूत करता है और शिक्षकों के योगदान को सराहने का अवसर प्रदान करता है।

आध्यात्मिक और योग परंपरा में

आध्यात्मिक और योग गुरुओं का भी इस दिन विशेष सम्मान किया जाता है। योग और ध्यान की शिक्षा देने वाले गुरु अपने शिष्यों को इस दिन विशेष उपदेश और आशीर्वाद देते हैं। यह दिन आत्मनिरीक्षण, ध्यान और साधना के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है। गुरु पूर्णिमा के दिन योग साधक अपने गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं और उनसे मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं।

सामाजिक दृष्टिकोण से

गुरु पूर्णिमा का सामाजिक महत्व भी महत्वपूर्ण है। यह दिन हमें यह सिखाता है कि जीवन में एक सही मार्गदर्शक का कितना महत्वपूर्ण स्थान है। एक सही गुरु न केवल ज्ञान प्रदान करता है, बल्कि सही और गलत के बीच अंतर करने की क्षमता भी विकसित करता है। यह दिन हमें समाज में गुरु के महत्व को पहचानने और उनके प्रति आदर और सम्मान प्रकट करने की प्रेरणा देता है।

गुरु पूर्णिमा के उत्सव की परंपराएं

गुरु पूर्णिमा के दिन कई परंपराएं निभाई जाती हैं, जो इस पर्व को और भी खास बनाती हैं:

  • गुरु पूजन: शिष्य अपने गुरु की पूजा करते हैं, उनके चरण धोते हैं और उन्हें वस्त्र, माला और मिठाई अर्पित करते हैं।
  • ध्यान और साधना: इस दिन विशेष ध्यान और साधना का आयोजन किया जाता है, जिससे मन और आत्मा को शांति और शक्ति मिलती है।
  • धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम: विभिन्न मंदिरों और आश्रमों में धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिसमें गुरु की महिमा का गुणगान किया जाता है।
  • प्रवचन और उपदेश: गुरु अपने शिष्यों को प्रवचन और उपदेश देते हैं, जिससे शिष्यों को जीवन में सही मार्गदर्शन प्राप्त होता है।

गुरु पूर्णिमा भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो गुरु-शिष्य परंपरा और गुरु के महत्व को रेखांकित करता है। यह पर्व हमें यह याद दिलाता है कि जीवन में एक सच्चे गुरु का मार्गदर्शन कितना महत्वपूर्ण है। पुराणों से लेकर आधुनिक समाज तक, गुरु पूर्णिमा का महत्व हमेशा बना रहेगा और यह पर्व हमें अपने गुरुओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का एक सुअवसर प्रदान करता है।

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गुरु पूर्णिमा पर, हम सभी को अपने गुरुओं के प्रति आदर और सम्मान प्रकट करना चाहिए और उनके मार्गदर्शन का अनुसरण करना चाहिए, ताकि हमारा जीवन ज्ञान, सद्गुण और सही दिशा में अग्रसर हो सके।

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