केंद्रीय मंत्री ने राज्यसभा सदस्य संदीप पाठक को दी जानकारी
नई दिल्ली: राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने बताया कि आने वाले सालों में 2 लाख 73 हजार 757 पेड़ और काटे जाएंगे। आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सदस्य संदीप पाठख द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में, मंत्री ने बताया कि छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार परसा ईस्ट केते बासेन माइन (पीईकेबी) में 94,460 पेड़ पहले ही काटे जा चुके हैं। इस नुकसान की भरपाई के लिए कुल 53,40,586 पेड़ लगाए गए हैं, जिनमें से 40,93,395 पेड़ अभी भी बचे हुए हैं।
केंद्रीय मंत्री ने बताया कि पेड़ों की कटाई पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखने के लिए जरूरी है, और इस नुकसान की भरपाई के लिए नए पेड़ लगाए जा रहे हैं। सरकार की योजना के तहत, काटे गए हर पेड़ के बदले कई पेड़ लगाए जा रहे हैं ताकि जंगलों का पुनर्वास हो सके और पर्यावरण को नुकसान न पहुंचे।
दिल्ली से भी बड़ा है हसदेव अरण्य
छत्तीसगढ़ के सरगुजा और कोरबा जिले में हसदेव अरण्य 1,70,000 हेक्टेयर में फैला हुआ है, जो कि क्षेत्रफल में दिल्ली से भी बड़ा है। हसदेव अरण्य में घने जंगल और विविध जैव विविधता है। यहां के आदिवासी समुदाय और एक्टिविस्ट लंबे समय से इस क्षेत्र में हो रहे कोयला खनन का विरोध कर रहे हैं।
हसदेव अरण्य से फिलहाल राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम को कोयला आपूर्ति की जा रही है, जिसकी पावर प्लांट की कुल कोयला आवश्यकता साल में लगभग 200 लाख टन है। इस क्षेत्र की एक प्रमुख खदान परसा ईस्ट केते बासन से सालाना 210 लाख टन कोयला उत्पादन हो रहा है। इसके बावजूद, राजस्थान सरकार परसा और केते एक्सटेंशन में नई कोयला खदानें खोलना चाहती है, जो आदिवासियों और पर्यावरण प्रेमियों के विरोध का कारण बन रहा है।
जन-सुनवाई 2 अगस्त को
आगामी 2 अगस्त को केते एक्सटेंशन कोल ब्लॉक की पर्यावरण जनसुनवाई आयोजित की जाएगी। इस जनसुनवाई का मुख्य उद्देश्य नई कोयला खदानों के पर्यावरणीय प्रभावों पर चर्चा करना है। हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति से जुड़े आदिवासी और अन्य लोग लंबे समय से खनन परियोजनाओं का विरोध कर रहे हैं और इस जनसुनवाई के भी विरोध में हैं।
जनसुनवाई में भाग लेने वाले लोगों का मानना है कि कोयला खनन से पर्यावरण को भारी नुकसान होगा और आदिवासी समुदाय के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। सरगुजा में आयोजित इस जनसुनवाई के दौरान व्यापक विरोध की भी संभावना है। आदिवासी समुदाय और पर्यावरण प्रेमी सरकार से मांग कर रहे हैं कि वे हसदेव अरण्य की सुरक्षा सुनिश्चित करें और नई खदानों की योजना को रोके।