बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रवींद्र कुमार अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने स्कूल शिक्षा विभाग में व्याख्याता के पद पर पदोन्नति के लिए बीएड डिग्री को अनिवार्य करार दिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि डीएड और डीएलएड डिग्री धारक अभ्यर्थियों को इस पद के लिए अपात्र माना जाएगा।
ज्ञात हो कि प्रदेश के विभिन्न जिलों के पंचायत विभाग में कार्यरत शिक्षकों ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि राज्य सरकार द्वारा 2019 में बनाए गए भर्ती नियमों के अनुसार व्याख्याता पद के लिए पदोन्नति में अनुभव और योग्यता के मानदंड भेदभावपूर्ण हैं। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के उल्लंघन की बात कही।
बीएड के बिना नहीं मिलेगी व्याख्याता पदोन्नति
फैसले में हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि व्याख्याता पद के लिए बीएड डिग्री होना अनिवार्य है। कोर्ट ने छत्तीसगढ़ स्कूल शिक्षा सेवा भर्ती नियम 2019 के नियम 14 और 15 के तहत अनुसूची-IV को असंवैधानिक घोषित कर दिया है। इस निर्णय से डीएड और डीएलएड धारक शिक्षकों के लिए व्याख्याता के पद पर पदोन्नति की संभावना खत्म हो गई है।
राज्य सरकार को निर्देश दिया गया है कि वह व्याख्याता पद के लिए पदोन्नति की सूची में केवल बीएड डिग्री धारक अभ्यर्थियों को ही शामिल करे और डीएड/डीएलएड धारकों को बाहर रखे।
सरकार का फैसला और शिक्षक वर्ग की आपत्ति
2018 में राज्य सरकार ने व्याख्याता पद पर पदोन्नति के लिए पांच साल के अनुभव को आवश्यक बताया था, जबकि सीधी भर्ती में न्यूनतम योग्यता स्नातकोत्तर और बीएड निर्धारित की गई थी। इसके खिलाफ कई शिक्षकों ने याचिका लगाई, जिसमें उन्होंने दावा किया कि यह नियम उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। कोर्ट ने इस पर सुनवाई करते हुए डीएड और डीएलएड धारकों को व्याख्याता पदोन्नति के लिए अयोग्य करार दिया।
न्यायालय का निर्णय और भविष्य की राह
हाई कोर्ट का यह फैसला राज्य के शिक्षा प्रणाली में व्याख्याता पद के लिए नई दिशाएं तय करता है। बीएड धारक शिक्षकों के लिए यह एक महत्वपूर्ण निर्णय है, जबकि डीएड और डीएलएड धारकों के लिए यह एक झटका साबित हुआ है। अब राज्य सरकार को इस फैसले के आधार पर आगे की प्रक्रिया तय करनी होगी।