बिलासपुर। डॉ. सी.वी. रमन विश्वविद्यालय में ‘उद्यमिता विकास: कुशल और विकसित भारत के लिए एक जनजातीय परिप्रेक्ष्य’ विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि, छत्तीसगढ़ के प्रमुख सचिव आदिवासी एवं जनजातीय विकास सोनमणि बोरा ने कहा कि यह विषय जनजातीय समुदाय के विकास के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। उन्होंने बताया कि देश में 10 करोड़ आदिवासी हैं, जिनमें से एक प्रतिशत छत्तीसगढ़ में रहते हैं। यहां 43 जनजातियां और 162 उप-जनजातियां हैं।
जनजातीय उद्यमिता पर शोध की आवश्यकता
सोनमणि बोरा ने कहा कि हमें इस दिशा में शोध करने की आवश्यकता है कि कौन-सी जनजातियां उद्यमिता में आगे हैं और कौन पीछे। उन्होंने जोर दिया कि आदिवासियों को मुख्यधारा और बाजार से जोड़ना जरूरी है, ताकि उनकी संस्कृति और परंपराएं अक्षुण्ण रहते हुए विकास और उद्यमिता का समन्वय हो सके।
वन आधारित अर्थव्यवस्था का सुझाव
कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रवि प्रकाश दुबे ने कहा कि आदिवासियों के विकास के लिए एक समानांतर वन आधारित अर्थव्यवस्था खड़ी करनी होगी। इससे उनके उत्पादों को बाजार और सही मूल्य मिल सकेगा। कुलसचिव डॉ. अरविंद तिवारी ने बताया कि विश्वविद्यालय में 1300 आदिवासी छात्राएं अध्ययनरत हैं। उन्होंने कहा कि संस्थान आदिवासी विद्यार्थियों की प्रतिभा को निखारने के लिए शिक्षा, खेल और कौशल विकास में लगातार काम कर रहा है।
ईको-टूरिज्म और उद्यमिता पर चर्चा
प्रोफेसर इन प्रैक्टिस अशोक तिवारी ने आदिवासी युवाओं को ईको-टूरिज्म से जोड़ने की बात रखी। संगोष्ठी में 8 राज्यों से आए विशेषज्ञों ने 130 शोध पत्र प्रस्तुत किए। कार्यक्रम का संचालन डॉ. ज्योतिबाला गुप्ता और समन्वयक डॉ. अनुपम तिवारी ने किया।
कला, संस्कृति और हर्बल उत्पादों की सराहना
सोनमणि बोरा ने विश्वविद्यालय में छत्तीसगढ़ी लोक कला, संस्कृति और ग्रामीण प्रौद्योगिकी के उत्कृष्टता केंद्रों का दौरा किया। उन्होंने वहां तैयार हर्बल उत्पादों और इनक्यूबेशन सेंटर के प्रयासों की प्रशंसा की। इनक्यूबेशन सेंटर युवाओं को उद्यमी बनाने में मदद कर रहा है।
इस अवसर पर भारतीय सामाजिक अनुसंधान परिषद, दिल्ली के निदेशक अजय गुप्ता, प्रो. दुर्गेश त्रिपाठी, प्रो. पुष्पराज सिंह, प्रो. विनोद सोनी और अन्य शोधार्थी व छात्र उपस्थित रहे। संगोष्ठी ने जनजातीय समुदाय के विकास में उद्यमिता के महत्व को रेखांकित किया।