विलुप्त हो रही प्रजातियों को बचाने की दिशा में बड़ा कदम

बिलासपुर। विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुकी गिद्धों की प्रजातियों को संरक्षित करने के लिए छत्तीसगढ़ शासन ने एक महत्वपूर्ण पहल की है। इसके तहत अचानकमार टाइगर रिजर्व (ATR) के औरापानी क्षेत्र में मौजूद 50 से अधिक देशी-विदेशी गिद्धों को GPS आधारित टैग लगाया जाएगा। इससे गिद्धों की गतिविधियों की निगरानी आसान होगी और यदि वे इधर-उधर भटकते हैं, तो तत्काल उनकी लोकेशन की जानकारी मिल सकेगी।

देशी और प्रवासी प्रजातियों की स्थिति

ATR के जंगलों में गिद्धों की कुल 9 प्रजातियों में से 7 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें हिमालयन ग्रिफॉन, यूरोशियन ग्रिफॉन, सिनरस, लंबी चोंच वाले गिद्ध, सफेद पूंछ वाला राजगिद्ध और इजिप्शियन गिद्ध शामिल हैं। इनमें से कई प्रवासी प्रजातियां हैं जो मौसम के अनुसार आते-जाते रहते हैं।

संकट में तीन देशी प्रजातियां

भारत में पाए जाने वाले गिद्धों की तीन प्रमुख देशी प्रजातियां—सफेद पूंछ वाला गिद्ध (Gyps bengalensis), भारतीय गिद्ध (G. indicus) और पतली चोंच वाला गिद्ध (G. tenuirostris)—1990 के दशक के बाद से तेज़ी से विलुप्त हो रही हैं। इसका प्रमुख कारण मवेशियों के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाई डायक्लोफेनाक है, जो गिद्धों के लिए विषैली साबित हुई।

गिद्धों की निगरानी का नया दौर

औरापानी क्षेत्र में लंबी चोंच वाले गिद्ध (लांग-बिल्ड वल्चर) और इंडियन वल्चर की आबादी 50 से अधिक है। ये दोनों प्रजातियां ATR के सबसे सक्रिय निवासी हैं। वर्तमान में इन पर कर्मचारियों द्वारा मैन्युअल निगरानी रखी जाती है, लेकिन कई बार गिद्धों के अचानक गायब हो जाने से उनकी खोजबीन चुनौती बन जाती है। इसे देखते हुए अब जीपीएस टैगिंग सिस्टम का उपयोग किया जा रहा है।

विदेशी उपकरण से सुसज्जित होगा प्रोजेक्ट

इस परियोजना के तहत गिद्धों को प्लेटफॉर्म टर्मिनल ट्रांसमीटर (PTT) से जोड़ा जाएगा, जो GPS आधारित डिवाइस होगा और इसे विदेश से मंगाया जा रहा है। ATR प्रबंधन को इसके लिए भारत सरकार से NOC मिल चुकी है और अब केवल DGFT की अंतिम स्वीकृति शेष है।

पूरे देश के लिए मॉडल बन सकता है ATR

अचानकमार टाइगर रिजर्व के लोरमी बफर जोन में 100 किलोमीटर के दायरे में करीब 490 गिद्ध मौजूद हैं। यह प्रदेश का पहला संरक्षित क्षेत्र है जहाँ गिद्धों के संरक्षण के लिए अलग से प्रोजेक्ट संचालित किया जा रहा है। यहां स्थानीय ग्रामीणों को भी प्रशिक्षण देकर गिद्धों की मॉनिटरिंग में शामिल किया गया है, जिससे संरक्षण में सामुदायिक भागीदारी भी सुनिश्चित हो रही है।

गिद्धों का वैश्विक संकट

भारत ही नहीं, दुनिया भर में गिद्धों की आबादी तेजी से घट रही है। अफ्रीका और दक्षिण एशिया में इनकी कई प्रजातियां संकटग्रस्त श्रेणी में आ चुकी हैं। गिद्ध पारिस्थितिकीय चक्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं—वे मृत जीवों को खाकर बीमारियों के फैलाव को रोकते हैं। उनके घटते अस्तित्व का सीधा असर सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरणीय संतुलन पर पड़ता है।

विशेषज्ञों की भागीदारी

पिछले वर्ष 15 नवम्बर को राज्य स्तरीय सम्मेलन में ATR, इंद्रावती, गुरु घासीदास टाइगर रिजर्व सहित अन्य क्षेत्रों के अधिकारी और BNHS, WWF, WII जैसे राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय संगठन शामिल हुए थे। इस बैठक में गिद्धों के संरक्षण, संवर्धन और मॉनिटरिंग को लेकर दीर्घकालिक रणनीति पर चर्चा हुई।

“औरापानी जैसे संवेदनशील क्षेत्र में गिद्धों की इतनी बड़ी आबादी का होना पर्यावरण के लिए शुभ संकेत है। इस संरक्षण मॉडल को यदि सही ढंग से लागू किया गया, तो यह पूरे देश के लिए एक आदर्श बन सकता है।”
यू.आर. गणेश, उप संचालक, एटीआर

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