बिलासपुर। प्रॉबेशन अवधि में बिना अनुमति शादी की छुट्टी लेना बालोद जिला न्यायालय के एक चपरासी को भारी पड़ गया। 20 दिन की गैरहाज़िरी के बाद जब वह काम पर लौटा तो उसे नौकरी से निकाल दिया गया। लेकिन अब नौ साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद उसे फिर से नौकरी मिल गई है।
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हाल ही में सुनाए गए एक फैसले में राजेश कुमार देशमुख की बर्खास्तगी को “पहले से कलंकित” (ex facie stigmatic) माना है। कोर्ट ने कहा कि देशमुख की सेवा समाप्ति बिना विभागीय जांच के की गई, जो नियमों के खिलाफ है। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने बर्खास्तगी आदेश को रद्द करते हुए बालोद जिला न्यायालय को उन्हें फिर से बहाल करने और 50 प्रतिशत बकाया वेतन देने का आदेश दिया है।
राजेश कुमार देशमुख को 1 मई 2014 को चपरासी पद पर नियुक्त किया गया था और 7 अप्रैल 2016 से उन्हें दो साल की प्रॉबेशन अवधि पर रखा गया था। उन्होंने अपनी शादी के लिए 27 अप्रैल से 7 मई 2016 तक 7 दिनों की अर्जित छुट्टी मांगी थी, क्योंकि उनका विवाह 28-29 अप्रैल को तय था। हालांकि, बालोद के जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने उनकी छुट्टी को खारिज कर उन्हें केवल तीन दिन के लिए अलग से आवेदन देने का निर्देश दिया था।
इसके बावजूद देशमुख 24 अप्रैल से 12 मई 2016 तक ड्यूटी से नदारद रहे। इस पर 27 मई 2016 को उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। अपने जवाब में उन्होंने कहा कि उन्हें छुट्टी अस्वीकृत होने की जानकारी नहीं थी और उन्होंने माफी भी मांगी।
बावजूद इसके, 22 जून 2016 को उन्हें छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (आचरण) नियम 1965 और सामान्य सेवा शर्त नियम 1961 के तहत मुख्यालय छोड़ने और अनुशासनहीनता के आरोप में नौकरी से हटा दिया गया।
देशमुख ने अपनी बर्खास्तगी को अधिवक्ता आर.के. केशरवानी और अजिता केशरवानी के माध्यम से चुनौती दी। यह मामला जस्टिस संजय एस. अग्रवाल की एकलपीठ में सुना गया।
सुनवाई के दौरान वकीलों ने दलील दी कि प्रॉबेशन पर कार्यरत कर्मचारी को बिना विभागीय जांच के नहीं हटाया जा सकता। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के विजयकुमारन बनाम सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ केरल मामले का हवाला भी दिया।
हाईकोर्ट ने पाया कि बर्खास्तगी आदेश में देशमुख को ‘गंभीर रूप से लापरवाह’ कहा गया, जबकि कारण बताओ नोटिस में केवल छुट्टी को लेकर सवाल उठाए गए थे, न कि उनके मुख्यालय में न रहने को लेकर। कोर्ट ने माना कि बिना जांच और सफाई का मौका दिए इस तरह की टिप्पणी करना देशमुख के करियर को नुकसान पहुंचा सकता है, इसलिए यह आदेश कलंकित माना जाएगा।
हाईकोर्ट ने न केवल बर्खास्तगी आदेश को निरस्त किया, बल्कि स्पष्ट किया कि अगर आगे कोई नई जांच नहीं होती है, तो देशमुख को सेवा समाप्ति से पुनः बहाली तक की अवधि के 50 प्रतिशत वेतन का हकदार माना जाएगा।













