चार साल पहले 16 साल की बच्ची से गैंगरेप और परिवार की हत्या से दहला था इलाका, हाईकोर्ट ने कहा- यह दुर्लभतम मामला नहीं

बिलासपुर, 19 जून। कोरबा जिले की बहुचर्चित गैंगरेप और ट्रिपल मर्डर केस में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने निचली अदालत से मिली चार आरोपियों की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया है। कोर्ट ने कहा कि यह मामला भले ही समाज को झकझोरने वाला है, लेकिन यह ‘दुर्लभतम से दुर्लभ’ की श्रेणी में नहीं आता, जिसमें फांसी की सजा दी जाए।

मुख्य न्यायाधीश रमेश कुमार सिन्हा और न्यायमूर्ति बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने कहा कि सजा देने में कानून के सभी पहलुओं, घटनाक्रम और आरोपियों की उम्र को ध्यान में रखना जरूरी है। ऐसे में आजीवन कारावास ही न्याय का उद्देश्य पूरा करने के लिए काफी है।

हाईकोर्ट ने इस केस में एक अन्य आरोपी उमाशंकर यादव की उम्रकैद की सजा को भी बरकरार रखा है और उसकी बरी करने की अपील खारिज कर दी है।

क्या था मामला?

घटना जनवरी 2021 में कोरबा जिले के पोड़ी-उपरोड़ा इलाके में हुई थी। आदिवासी समुदाय की 16 साल की एक लड़की के साथ गैंगरेप किया गया और फिर उसकी, उसके पिता और 4 साल की नातिन की हत्या कर दी गई थी।

पुलिस ने इस मामले में छह लोगों को गिरफ्तार किया था – संतराम मंझवार (45), अनिल सारथी (20), आनंद दास (26), परदेशी दास (35), जब्बार उर्फ विक्की (21) और उमाशंकर यादव (22)।

पुराना हिसाब बना खूनी वारदात की वजह

आरोपी संतराम, किशन ( नाम बदला हुआ) से मवेशी चरवाता था। दोनों के बीच सालाना मजदूरी और अनाज देने का समझौता हुआ था, लेकिन जब किशन ने बकाया मांगा तो टालमटोल किया गया। इसके बाद पीड़ित अपनी पत्नी, बेटी और नातिन के साथ हिसाब लेने गया था।

कुछ पैसे और चावल देने के बाद संतराम और उसके साथियों ने तीनों को बाइक से छोड़ने की बात कहकर रोक लिया, और फिर रास्ते में सुनियोजित तरीके से वारदात को अंजाम दिया।

जंगल में मिले थे तीनों के शव

घटना के अगले दिन 30 जनवरी 2021 को कोराई जंगल में तीनों के शव बरामद हुए। पुलिस जांच में सामने आया कि आरोपियों ने पहले किशन को शराब पिलाई, फिर उसके सामने ही उसकी बेटी से गैंगरेप किया। जब उसने विरोध किया तो उसे लाठी-डंडों से पीट-पीटकर मार डाला। इसके बाद लड़की और उसकी 4 साल की नातिन को भी बेरहमी से मार दिया गया।

निचली अदालत ने सुनाई थी फांसी

पॉक्सो कोर्ट की विशेष न्यायाधीश डॉ. ममता भोजवानी ने चार आरोपियों को फांसी और उमाशंकर यादव को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। कोर्ट ने इसे अमानवीय, वीभत्स और समाज को झकझोरने वाली घटना बताया था।

अब हाईकोर्ट ने सजा को कुछ नरमी के साथ बदलते हुए कहा कि यह मामला फांसी की श्रेणी में नहीं आता, लेकिन उम्रकैद से दोषियों को छोड़ा नहीं जा सकता। एक आरोपी उमाशंकर यादव ने अपनी उम्र कैद की सजा से राहत मांगी थी, हाईकोर्ट ने उसकी अपील खारिज कर दी।

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