बिलासपुर| छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने नशीले पदार्थों की तस्करी से जुड़े एक बड़े मामले में अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि अगर पुलिस की जांच में प्रक्रिया की कुछ खामियां भी रह जाएं, लेकिन अगर सबूत मजबूत हैं और यह साबित हो जाए कि आरोपी के पास से मादक पदार्थ बरामद हुआ, तो उसे सिर्फ तकनीकी चूक के आधार पर छोड़ा नहीं जा सकता।
यह फैसला चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बिभु दत्ता गुरु की डिवीजन बेंच ने 14 जुलाई को सुनाया। कोर्ट मो. कालूत मंसुली और महेश कुमार पासवान की अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिन्हें महासमुंद की विशेष एनडीपीएस अदालत ने 20 साल की सजा और ₹2 लाख जुर्माने की सजा दी थी।
913 किलो गांजा बरामद, 34 बोरियों में छिपाया गया था
मामला 10 सितंबर 2020 का है, जब थाना कोमाखान के प्रभारी प्रदीप मिन्ज को सूचना मिली कि उड़ीसा से बिहार गांजा ले जाया जा रहा है। सूचना पर पुलिस ने टेमरी फॉरेस्ट बैरियर पर एक ट्रक को रोका। ट्रक में मो. कालूत मंसुली और महेश कुमार पासवान सवार थे। जांच करने पर ट्रक से 913 किलो गांजा मिला, जो 183 पैकेट्स में भरकर 34 बोरियों में छिपाया गया था।
मौके पर ही 100-100 ग्राम के दो नमूने लिए गए और बाकी गांजा जब्त कर लिया गया। फॉरेंसिक जांच में यह गांजा साबित हुआ।
कोर्ट ने क्या कहा?
आरोपियों की तरफ से दलील दी गई थी कि एनडीपीएस एक्ट की धारा 52-ए के तहत जब्ती की प्रक्रिया में चूक हुई है, इसलिए सजा को खत्म किया जाए। लेकिन हाईकोर्ट ने साफ कहा कि जब जांच में गांजे की बरामदगी, नमूने की फॉरेंसिक पुष्टि और सभी जरूरी कागजी कार्रवाई मौजूद है, तो सिर्फ प्रक्रिया में मामूली चूक होने पर आरोपी को राहत नहीं दी जा सकती।
कोर्ट ने दोनों आरोपियों की अपील खारिज कर ट्रायल कोर्ट की सजा को सही ठहराया।