नई दिल्ली। एक अहम घटनाक्रम में राज्यसभा में एक नया विधेयक पेश किया गया है, जो भारतीय राजनीति में बड़ा बदलाव ला सकता है। इस बिल के तहत अगर कोई प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री 30 दिन तक जेल में रहता है, तो उसे अपने पद से बर्खास्त किया जा सकेगा। यह कदम गंभीर आपराधिक मामलों में गिरफ्तारी के बाद पद पर बने रहने की मौजूदा प्रथा को खत्म करने की दिशा में उठाया गया है।

केंद्र सरकार का कहना है कि यह बिल सुशासन और नैतिकता को मजबूत करने के लिए जरूरी है। बिल के मुताबिक, अगर कोई नेता किसी ऐसे अपराध में गिरफ्तार होता है, जिसमें कम से कम पांच साल की सजा का प्रावधान हो, और वह 30 दिन तक लगातार हिरासत में रहता है, तो 31वें दिन उसका पद स्वतः समाप्त हो जाएगा। अगर नेता खुद इस्तीफा न दे, तो उसे जबरन हटाया जा सकेगा। हालांकि, जमानत मिलने के बाद उसे फिर से पद पर नियुक्त किया जा सकता है।

इस बिल को पेश करते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि यह कदम देश में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के लिए उठाया गया है। उन्होंने जोर देकर कहा कि जेल से सरकार चलाना संवैधानिक नैतिकता के खिलाफ है। बिल में संविधान के अनुच्छेद 75, 164 और 239AA में संशोधन का प्रस्ताव है, जो केंद्र और राज्यों के मंत्रियों पर लागू होगा। साथ ही, जम्मू-कश्मीर और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए भी अलग प्रावधान जोड़े गए हैं।

हालांकि, विपक्ष ने इस बिल का जोरदार विरोध किया है। कांग्रेस और अन्य दलों का आरोप है कि यह कानून राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने का हथियार बन सकता है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार जांच एजेंसियों का दुरुपयोग कर विपक्षी नेताओं को फंसाकर उनकी सरकारें गिरा सकती है। विपक्षी नेता अरविंद केजरीवाल और हेमंत सोरेन जैसे मामलों का हवाला दे रहे हैं, जो हाल ही में जेल में रहे।

बिल को अब संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के पास भेजने की योजना है, जहां इस पर विस्तृत चर्चा होगी। अगर यह पास होता है, तो यह भारतीय राजनीति में एक नई शुरुआत हो सकती है, लेकिन इसके सियासी असर भी बड़े होंगे।

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