एसईसीएल के दो कर्मचारियों को रिश्वत लेने के मामले में हुई थी सजा
बिलासपुर। पीएफ की राशि जारी करने के बदले रिश्वत मांगने के आरोप में दोषसिद्धि के बाद सेवा से बर्खास्त किए गए एसईसीएल के दो कर्मचारियों को हाई कोर्ट से राहत मिली है। जस्टिस रजनी दुबे की सिंगल बेंच ने सीबीआई की स्पेशल कोर्ट द्वारा सुनाए गए फैसले को रद्द करते हुए दोनों याचिकाकर्ताओं को बरी कर दिया। हालांकि कोर्ट ने उन्हें कुछ शर्तों के साथ जमानत दी है और यह भी स्पष्ट किया है कि यदि इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाती है तो उन्हें वहां पेश होना होगा।
मामला 2004 का है, जब सेवा से बर्खास्त किए गए एक कर्मचारी ने अपनी सीएमपीएफ राशि जारी करने के लिए आवेदन दिया था। आरोप है कि संबंधित अधिकारियों ने उससे पहले 10 हजार रुपये की रिश्वत मांगी और बाद में 3 हजार पर तैयार हुए। अंत में 2 हजार रुपये रिश्वत के रूप में तय हुए, जिसकी शिकायत कर्मचारी ने सीबीआई से कर दी। सीबीआई ने ट्रैप कार्रवाई कर नकदी बरामद की और आरोपियों के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम समेत विभिन्न धाराओं में केस दर्ज कर स्पेशल कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की।
स्पेशल कोर्ट ने सुनवाई के बाद आरोपियों को डेढ़ साल कैद और तीन हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी। फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई। याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता संदीप दुबे ने तर्क दिया कि अभियोजन की स्वीकृति नहीं ली गई, बरामद नकदी सीधे आरोपियों के पास से नहीं मिली और गवाहों के बयान भी परस्पर विरोधाभासी हैं, जिससे पूरा केस संदेहास्पद हो जाता है।
हाई कोर्ट ने रिकॉर्ड और गवाहों के बयानों की समीक्षा के बाद माना कि अभियोजन पक्ष की कहानी भरोसेमंद नहीं है और ट्रायल कोर्ट का निर्णय विधिसम्मत नहीं है। इस आधार पर कोर्ट ने दोषसिद्धि और सजा दोनों को निरस्त कर आरोपियों को बरी कर दिया।
साथ ही कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि अपीलकर्ता छह महीने तक प्रभावी रहने वाले 25-25 हजार रुपये के निजी मुचलके और उतनी ही राशि के जमानती बंधपत्र पेश करेंगे। इसके अलावा यदि सुप्रीम कोर्ट में इस निर्णय के खिलाफ एसएलपी दायर होती है तो उन्हें वहां उपस्थित होना अनिवार्य होगा।













