बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक मामले में फैसला दिया है कि दिवंगत बेटे के तीन नाबालिग बच्चों को उनके दादा (ससुर) हर महीने कुल 6000 रुपए भरण-पोषण के रूप में देंगे। कोर्ट ने कहा कि बच्चों को आश्रित माना जाएगा, क्योंकि वे मृतक के बेटे-बेटियां हैं। हालांकि, अदालत ने मां (बहू) की भरण-पोषण की मांग खारिज कर दी। कारण यह बताया गया कि विवाह कानूनी रूप से सिद्ध नहीं हो सका।
यह मामला बलौदा-भाटापारा जिले के पलारी तहसील के बालौदी गांव का है। महिला ने फैमिली कोर्ट में भरण-पोषण की याचिका लगाई थी। उसने कहा था कि 2008 में उसकी शादी रेशम लाल साहू से हुई थी और शादी के बाद उनके तीन बच्चे हुए। 2018 में पति ने आत्महत्या कर ली। फैमिली कोर्ट ने पहले ही आदेश दिया था कि हर बच्चे को 2000-2000 रुपए यानी कुल 6000 रुपए दिए जाएं।
महिला ने यह भी आरोप लगाया था कि उसके सास-ससुर पति को प्रताड़ित करते थे और बच्चों के प्रति भी क्रूरता बरतते थे। पति की मौत के बाद समाज की पंचायत ने बच्चों की जिम्मेदारी और एक एकड़ जमीन देने का निर्णय दिया था, लेकिन ससुर ने इनकार कर दिया। इसके बाद वह अपने मायके चली गई और सिलाई का काम करके बच्चों का पालन-पोषण करने लगी।
ससुर ने हाईकोर्ट में अपील करते हुए कहा कि बेटे का विवाह कानूनी नहीं था, क्योंकि महिला पहले से शादीशुदा थी और बिना तलाक लिए साथ रहने लगी थी। अदालत ने इस तर्क को मानते हुए बहू के भरण-पोषण को खारिज कर दिया, लेकिन बच्चों को आश्रित मानते हुए भरण-पोषण का अधिकार दिया। साथ ही, अपील दाखिल करने में हुई 443 दिनों की देरी को भी कोर्ट ने माफ कर दिया।