बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने रायगढ़ की एक महिला की भरण-पोषण याचिका खारिज करते हुए फैमिली कोर्ट के पुराने फैसले को सही माना है। कोर्ट ने कहा कि जब महिला अपनी मर्जी से पति से अलग रह रही है और इसके पीछे कोई उचित कारण साबित नहीं कर पाई, तो वह गुजारा भत्ता पाने की हकदार नहीं है।
दहेज प्रताड़ना का आरोप और आर्थिक संकट का हवाला
महिला ने फैमिली कोर्ट में याचिका देकर बताया था कि उसकी शादी 21 जून 2009 को हुई थी और 2011 में उसके जुड़वां बेटे हुए। उसका आरोप था कि पति और ससुराल पक्ष ने दहेज की मांग को लेकर उसे मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया और बाद में मायके छोड़ गए। महिला ने दावा किया कि पति कपड़ों का व्यवसाय करता है और 70 हजार रुपए मासिक कमाता है, इसलिए उसे हर महीने 20 हजार रुपए भरण-पोषण दिया जाए।
पति ने आरोपों को बताया मनगढ़ंत
पति ने जवाब में कहा कि पत्नी बिना किसी कारण के अलग रहती है और झूठे मुकदमे में फंसाने की धमकी देती थी। रायगढ़ फैमिली कोर्ट ने 27 सितंबर 2021 को महिला की मांग यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि उसके पास अलग रहने का उचित कारण नहीं है।
घरेलू हिंसा में पति बरी
महिला ने पति और परिजनों पर घरेलू हिंसा का मामला भी दर्ज कराया था, लेकिन रायगढ़ की फैमिली कोर्ट ने सभी को बरी कर दिया। फैमिली कोर्ट ने अपने आदेश में इस बात का भी उल्लेख किया था। हालांकि महिला ने इस फैसले को चुनौती दी हुई है और मामला अभी विचाराधीन है।
सीजे की बेंच ने खारिज की याचिका
महिला ने फैमिली कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में चुनौती दी। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की सिंगल बेंच ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि सबूतों से साबित होता है कि महिला अपनी इच्छा से अलग रह रही है। जब तक वह अलग रहने का वाजिब कारण नहीं बताती, तब तक वह गुजारा भत्ता नहीं ले सकती।