छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कहा- याचिका केवल धारणा पर आधारित, ठोस सबूत नहीं
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने माओवादी नेता कथा रामचंद्र रेड्डी की मौत की विशेष जांच दल (SIT) से जांच कराने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता इस बात को साबित करने के लिए कोई ठोस प्रमाण पेश नहीं कर सका कि यह मुठभेड़ फर्जी थी। अदालत ने इसे “महज धारणा पर आधारित याचिका” बताते हुए खारिज कर दिया।
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरु की खंडपीठ ने 14 अक्टूबर को सुनवाई पूरी करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता अदालत के हस्तक्षेप योग्य कोई ठोस मामला नहीं बना सका। इसलिए इस याचिका को गुणहीन मानते हुए अस्वीकार किया गया।
फर्जी मुठभेड़ में मार गिराने का आरोप
यह याचिका मृतक कथा रामचंद्र रेड्डी के पुत्र राजा चंद्रा द्वारा संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत दायर की गई थी। उन्होंने दावा किया था कि उनके पिता और पारिवारिक मित्र कदारी सत्यनारायण रेड्डी को 22 सितंबर 2025 को पुलिस ने “फर्जी मुठभेड़” में मार दिया। याचिकाकर्ता ने कहा कि मुठभेड़ के दौरान केवल दो माओवादी ही मारे गए, जबकि सैकड़ों नक्सलियों और सुरक्षा बलों के बीच गोलीबारी में पुलिस को कोई नुकसान नहीं हुआ, जिससे घटना पर संदेह होता है।
दोनों पक्षों ने अपनी-अपनी दलीलें दीं
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा कि मृतक के शरीर पर चोटों के ऐसे निशान थे जो गोलीबारी से मेल नहीं खाते। उन्होंने आरोप लगाया कि पोस्टमार्टम की वीडियोग्राफी अधूरी थी और सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन नहीं किया गया।
वहीं, राज्य के महाधिवक्ता प्रफुल्ल एन. भरत ने दावा किया कि यह मुठभेड़ वास्तविक थी। उन्होंने बताया कि पुलिस ने अबुझमाड़ क्षेत्र में नक्सलियों की मौजूदगी की सूचना पर कार्रवाई की थी, जिसमें दो माओवादी मारे गए। घटनास्थल से AK-47 और इंसास राइफल सहित कई हथियार बरामद किए गए। राज्य ने यह भी बताया कि फोरेंसिक रिपोर्ट से साबित हुआ कि मृतकों के हाथों पर “फायरिंग अवशेष” मिले हैं, जिससे उनके हथियार चलाने की पुष्टि होती है।
अदालत ने नहीं माना फर्जी मुठभेड़ का आरोप
पीठ ने माना कि याचिकाकर्ता के आरोपों के समर्थन में कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं है। अदालत ने कहा कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में पुलिस और माओवादियों के बीच मुठभेड़ में असमान हताहत होना असामान्य नहीं है। पुलिस को कोई नुकसान न होना यह साबित नहीं करता कि मुठभेड़ फर्जी थी।
न्यायालय ने यह भी उल्लेख किया कि मृतक वर्ष 2007 से अपने परिवार से संपर्क में नहीं था और उसका गंभीर आपराधिक रिकॉर्ड मौजूद था। अंततः, हाईकोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि “मामले में किसी स्वतंत्र जांच की आवश्यकता नहीं है।”