चौबे सहित देश व अनेक राज्यों के कवियों ने किया काव्यपाठ, कला पत्रिका ‘रंग संवाद’ का विमोचन
साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में सक्रिय वनमाली सृजन पीठ के बिलासपुर केंद्र का रविवार शाम उद्घाटन हुआ। इस दौरान देश के विख्यात साहित्यकारों ने कविता पाठ किया । साथ ही आमंत्रित अतिथियों ने सांस्कृतिक कला पत्रिका रंग संवाद का विमोचन किया। इस अवसर पर उपस्थित साहित्यकार कवि और डॉ. सी वी रामन विश्वविद्यालय के कुलाधिपति संतोष चौबे सहित देश के सभी राज्यों से आए विख्यात कवि और साहित्यकारों ने कविता पाठ किया।
इस अवसर पर साहित्यकार और डॉ.सी.वी.रामन विवि के कुलाधिपति संतोष चौबे ने अपने पिता वनमाली जी की स्मृतियों को साझा करते हुए कहा कि उनकी बिलासपुर में बहुत सी यादें हैं। मेरी बहनों का जन्म बिलासपुर में हुआ और मेरा जन्म खंडवा में हुआ। इसके बाद भी घर में हर थोड़ी देर में बिलासपुर की बातें जरूर हुआ करती हैं। श्री चौबे ने बताया कि मैं सात बहनों के बाद सबसे छोटा भाई था, इसलिए पिता जी और मेरा सीधा संवाद हुआ करता था। वे मेरी जिज्ञासा में घुसकर बात किया करते थे। उनके अचानक चले जाने के बाद मैंने तय किया कि उनकी फिर से खोज की जाए और उनकी खोज का सिलसिला शुरू हुआ जो अब भी जारी है। उनके पुराने शिष्य और उनसे जुड़े लोगों से मुलाकात करने के बाद मुझे यह जानकारी मिली कि वह वनमाली के नाम से लिखा करते थे। अब मेरे जीवन की यात्रा भी उनकी खोज की यात्रा के साथ साथ चलती रहती है। एक तरह से दो जीवन जी रहा हुं। चौबे ने अपने पढ़ाई के बाद से लेकर अब तक की के सफर की बातें भी साझा की और जीवन के हर पहलू के संघर्प को भी बताया। उन्होंने कहा कि वनमाली सृजन पीठ की स्थापना आज बिलासपुर में की गई है और यह सतत् साहित्य के क्षेत्र में काम करता रहेगा। पिता जी जहां-जहां रहे वहां-वहां हमने विश्वविद्यालय की भी स्थापना की है। इस अवसर पर चौबे ने छोड़ो यार, नई स्त्री, पुरानी स्त्री और पुरानी स्त्री का भाई सहित 6 कविताओं को पाठ किया।
कुलाधिपति और आईसेक्ट के डायरेक्टर संतोप चौबे ने बताया कि वनमाली सृजन पीठ के कुल एक हजार केंद्र खोले जाएंगे। भोपाल से कई वर्प पूर्व शुरुआत कर दी गई है आगामी एक साल में एक हजार केंद्र स्थापित किए जाएंगें । उन्होंने बताया कि बिलासपुर,खंडवा, भोपाल में कुल 100 से अधिक इकाइयां तय हो चुकी हैं और आगामी एक साल में हम सृजन पीठ के 1000 केंद्र खोल लेंगे।
उन्होंने कहा कि आज पुस्तक संस्कृति की वापसी का समय है, क्योंकि बीते 30 सालों में बहुत बदलाव आए हैं। कहानी,उपन्यास कविताओं में बहुत से बदलाव देखे जा रहे हैं। आज का यह समय विधाओं के बीच संवाद का समय है और हम भावी पीढ़ी को पुस्तक संस्कृति से जोड़ेंगे। और पुस्तक संस्कृति वापस जरूर आएगी। उन्होंने कहा कि आज साहित्य के एक्शन की आवश्यकता है क्योंकि साहित्य जगत में एक अवसाद की स्थिति नजर आती है जो कि साहित्य या साहित्यकारों में नहीं होना चाहिए।
इस अवसर पर नवनियुक्त अध्यक्ष साहित्यकार सतीश जायसवाल ने कहा कि आज हमने पूरे छत्तीसगढ़ में वनमाली सृजनपीठ की इकाइयों का गठन किया है और यह पीठ कला साहित्य रचनाओं के साथ वहां की स्थानीयता के अनुसार भी कार्य करेगा। उन्होंने वनमाली पीठ के भावी योजनाओं और कार्यों की जानकारी दी।
इस अवसर पर डॉ. सी वी रामन विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफ़ेसर आर पी दुबे ने कहा कि विश्वविद्यालय इस ऐतिहासिक पल का गवाह बन रहा है और हम हिंदी के लिए शोध पत्र पत्रिका का प्रकाशन करेंगे। इसमें हिंदी से संबंधित शोध को प्रमुखता से स्थान दिया जाएगा। विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के षोध और रचनाओं को इसमें स्थान दिया जाएगा।
कवियों की रचना पाठ का अद्भुत संगम-
जगन्नाथ प्रसाद चौबे ‘वनमाली’ को याद करते हुए साहित्यकारों और कवियों ने कहा कि वे हिंदी के कथा के हस्ताक्षर थे। उनकी अनेक कहानियां आज भी लोगों के जेहन में है। भोपाल से आए कवि वीरेंद्र धीर ने दो कविताओं का पाठ किया जिसमें एकाकी एकांत और जान पहचान नाम की कविता ने लोगों को मुक्त कर दिया । उनकी कविता एकाकी एकांत पर उन्होंने यह भाव प्रस्तुत किया कि व्यक्ति एकांत चाहता है पर एकाकीपन नहीं । बलौदाबाजार से आई कवियत्री मंजूषा मन ने स्त्रियों की स्थिति पर कविता पाठ किया। समारोह में रचनाकार शिव कुमार अर्चन ने दो कविताओं का पाठ किया। कवि महेंद्र गगन भोपाल से आए कवि और साहित्यकार विनय उपाध्याय, कवि विजय सिंह, विजय पंजवानी ने भी कविताएं पढ़ी। इस अवसर पर रमेश शर्मा रायगढ़, वीरेंद्र श्रीवास्तव, कामेश्वर पाण्डेय, गेंदलाल शुक्ल सहित मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ के अलावा उत्तर प्रदेश बिहार राजस्थान के बड़ी संख्या में कवि साहित्यकार पत्रकार शामिल हुए जिन्होंने अपनी कविताओं का पाठ किया।