ज्ञानपीठ से सम्मानित साहित्यकार को देशभर से श्रद्धांजलि, साहित्य जगत शोकाकुल
रायपुर, 23 दिसंबर। हिंदी साहित्य के वरिष्ठ, संवेदनशील और विलक्षण रचनाकार विनोद कुमार शुक्ल का मंगलवार को रायपुर में निधन हो गया। वे लंबे समय से अस्वस्थ थे और रायपुर स्थित AIIMS में उनका इलाज चल रहा था। उनके निधन के साथ ही हिंदी साहित्य में सादगी, मौन और गहरी मानवीय संवेदना की एक विशिष्ट आवाज़ हमेशा के लिए खामोश हो गई।
अस्वस्थता और इलाज
पिछले कुछ महीनों से विनोद कुमार शुक्ल की तबीयत लगातार खराब चल रही थी। सांस संबंधी तकलीफ और उम्र से जुड़ी जटिलताओं के कारण उन्हें पहले निजी अस्पताल और फिर एम्स रायपुर में भर्ती कराया गया। चिकित्सकों के प्रयासों के बावजूद 23 दिसंबर की शाम उन्होंने अंतिम सांस ली।
आम जीवन का असाधारण लेखक
विनोद कुमार शुक्ल उन दुर्लभ साहित्यकारों में थे, जिन्होंने बहुत धीमे और सरल शब्दों में गहरी बातें कहीं। कविता, कहानी और उपन्यास—तीनों विधाओं में उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई। उनका लेखन शोर से दूर, भीतर की दुनिया में झांकता हुआ दिखाई देता है।
छोटे शहर, साधारण लोग, घरेलू जीवन और मानवीय रिश्ते—इन सबको उन्होंने ऐसी भाषा दी, जो चुप रहते हुए भी बहुत कुछ कह जाती है।
चर्चित और यादगार रचनाएं
विनोद कुमार शुक्ल की कई कृतियां हिंदी साहित्य की अमूल्य धरोहर मानी जाती हैं। उनकी प्रमुख रचनाओं में शामिल हैं—
- नौकर की कमीज़ (उपन्यास) – जिस पर बाद में फिल्म भी बनी
- दीवार में एक खिड़की रहती थी (उपन्यास)
- खिलेगा तो देखेंगे (उपन्यास)
- पेड़ पर कमरा (कविता संग्रह)
- लगभग जयहिंद (कविता संग्रह)
- महाविद्यालय (कहानी संग्रह)
इन रचनाओं में उनकी दृष्टि, भाषा और संवेदना का अनोखा मेल दिखाई देता है।
सम्मान और उपलब्धियां
वर्ष 2025 में विनोद कुमार शुक्ल को उनके समग्र साहित्यिक योगदान के लिए 59वां ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया। इसके साथ ही वे छत्तीसगढ़ से यह सम्मान पाने वाले पहले साहित्यकार बने। इससे पहले उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार सहित अनेक प्रतिष्ठित सम्मानों से भी नवाजा गया था।
देश के शीर्ष नेताओं ने दी श्रद्धांजलि
विनोद कुमार शुक्ल के निधन पर देशभर से शोक संदेश आए।
नरेंद्र मोदी ने अपने शोक संदेश में कहा कि विनोद कुमार शुक्ल ने हिंदी साहित्य को एक नई संवेदनशीलता दी और उनकी रचनाएं पीढ़ियों तक पाठकों को प्रेरित करती रहेंगी।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने कहा कि विनोद कुमार शुक्ल का जाना छत्तीसगढ़ ही नहीं, पूरे देश के साहित्य के लिए अपूरणीय क्षति है। उन्होंने कहा कि शुक्ल ने अपनी लेखनी से छत्तीसगढ़ को राष्ट्रीय साहित्यिक मानचित्र पर विशिष्ट पहचान दिलाई।
इसके अलावा अनेक साहित्यकारों, लेखकों, शिक्षाविदों और सांस्कृतिक संगठनों ने भी शोक व्यक्त करते हुए उन्हें हिंदी साहित्य का “शांत लेकिन गहरा हस्ताक्षर” बताया।
रचनाओं में जीवित रहेंगे विनोद कुमार शुक्ल
विनोद कुमार शुक्ल भले ही अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी रचनाएं हमेशा जीवित रहेंगी। उनकी भाषा, दृष्टि और संवेदना आने वाली पीढ़ियों को यह सिखाती रहेंगी कि साहित्य ऊंची आवाज़ में नहीं, बल्कि गहरे मौन में भी रचा जा सकता है। हिंदी साहित्य ने आज अपने सबसे सादे और सबसे गहरे रचनाकारों में से एक को खो दिया है।














