सिंहदेव के हिसाब से एक विधायक को जगह मिलना मुमकिन, लेकिन बघेल के फार्मूले में फिट नहीं
राजेश अग्रवाल/ नई सरकार के मंत्रिमंडल में इस बार बिलासपुर को जगह मिल पाएगी या नहीं इसे लेकर संशय की स्थिति बन गई है। बड़ी संख्या में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के विधायक बनने और बिलासपुर जिले के दोनों विधायकों के पहली बार चुने जाने के कारण यह सवाल खड़ा हो गया है। यदि ऐसा होता है तो बिलासपुर जिले के लोगों को बड़ी मायूसी होगी क्योंकि न सिर्फ छत्तीसगढ़ बनने के बाद से बल्कि मध्यप्रदेश के जमाने से बिलासपुर का हमेशा मंत्रिमंडल में खासा दबदबा रहा है।
छत्तीसगढ़ बनने के बाद पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी थे, जो इसी जिले के हैं। वे इस बार भी अपनी अलग पार्टी से जिले की मरवाही सीट से विधायक हैं। स्व. रामाचरण राय, श्रीधर मिश्रा, चित्रकांत जायसवाल, मनहरण लाल पांडेय, राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल, अशोक राव, बी. आर. यादव, गणेश राम अनंत, बंशीलाल धृतलहरे जैसे नेताओं को मध्यप्रदेश के जमाने में भी मंत्रिमंडल में जगह मिलती रही है। दिग्विजय सिंह सरकार के समय तो अविभाजित बिलासपुर से पांच मंत्रियों के अलावा विधानसभा अध्यक्ष का पद भी बिलासपुर का था। राज्य बनने के बाद पहली सरकार की कमान जहां जोगी ने संभाली वहीं उनके बाद बिलासपुर शहर की सीट से प्रतिनिधित्व करने वाले अमर अग्रवाल लगातार मंत्रिमंडल में शामिल रहे। इसके अलावा स्वास्थ्य मंत्री के रूप में एक कार्यकाल डॉ. कृष्ण मूर्ति बांधी ने भी पूरा किया है। इसी अवधि में विधानसभा अध्यक्ष का पद भी जिले के बिल्हा से विधायक धरमलाल कौशिक को मिला।
छत्तीसगढ़ बनने के बाद इसकी राजधानी बिलासपुर हो, इसके लिए भी जिले और आसपास के लोगों ने संघर्ष किया था। तब हालांकि समझौते के तहत इसे हाईकोर्ट मिला और इंदौर की तरह प्रदेश की आर्थिक राजधानी बनाने का आश्वासन मिला था। हाईकोर्ट तो मिल गया पर यहां औद्योगिक, व्यावसायिक गतिविधियां वादे के अनुरूप विस्तार नहीं पा सकीं। कोरबा, जांजगीर-चाम्पा और मुंगेली में विभाजित होने के बाद भी वर्तमान बिलासपुर 26 लाख जनसंख्या के साथ रायपुर के बाद सर्वाधिक आबादी वाला जिला है। पिछली सरकार में यहां से अमर अग्रवाल मंत्री रहे। बिलासपुर लोकसभा के अंतर्गत आने वाले मुंगेली जिले की आबादी 7 लाख है, जहां से खाद्य मंत्री के रूप में पुन्नूलाल मोहले ने प्रतिनिधित्व किया।
इस बार परिस्थितियां कुछ ऐसी बन पड़ी है जिसमें बिलासपुर जिले को मंत्री पद से वंचित होना पड़ सकता है। जिले की सात सीटों में सिर्फ दो कांग्रेस के पास हैं- बिलासपुर से शैलेष पांडेय और तखतपुर से रश्मि सिंह ठाकुर। दोनों ही नये विधायक हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कह चुके हैं कि मंत्रिमंडल के गठन के समय अनुभव व वरिष्ठता को ध्यान में रखा जाएगा। इस समय कांग्रेस से प्रदेश में निर्वाचित विधायकों में से 32 ऐसे हैं जो दो या उससे अधिक बार विधायक रह चुके हैं। चूंकि मुख्यमंत्री के अलावा मंत्रिमंडल में केवल 12 और लोगों को जगह मिल सकती है इसलिये पहली बार चुनकर आये 35 कांग्रेस विधायकों में से शायद किसी को मौका ही नहीं मिले। बिलासपुर को मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिलती तो हो सकता है यहां के मतदाता अपने आपको ठगा महसूस करें, पर साथ ही यह निर्णय आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रदर्शन पर भी असर डालेगा। बिलासपुर संसदीय सीट में मुंगेली जिले की भी दो सीटें मुंगेली और लोरमी शामिल हैं। इनमें से मुंगेली पर भाजपा तो लोरमी में छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस ने जीत दर्ज की है। पूरे जिले में भाजपा के अलावा छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस ने भी कांग्रेस को कड़ी टक्कर दी, जिसके चलते इस बार कांग्रेस लहर में भी उसकी विधानसभा सीटें पिछली बार की चार सीटों में से दो रह गई हैं। छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस को इस विधानसभा चुनाव में जिले से 3 लाख 24 हजार मत मिले। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा के लखन लाल साहू ने करीब एक लाख 70 हजार वोटों के अंतर से कांग्रेस को हराया था। ऐसी परिस्थतियों में कांग्रेस को लोकसभा सीट जीतने के लिए मंत्रिमंडल में किसी न किसी विधायक को जगह देनी ही होगी। ऐसा न होने पर भाजपा इसे अगले चुनाव में एक मुद्दा भी बना सकती है और बिलासपुर की उपेक्षा की बात को हवा दे सकती है। इस सम्बन्ध में शपथ ग्रहण के बाद केबिनेट मंत्री टीएस सिंहदेव का एक बयान महत्वपूर्ण है कि प्रत्येक लोकसभा सीट से एक विधायक को मंत्री पद दिया जा सकता है। यह फार्मूला इसलिये कारगर हो सकता है क्योंकि प्रदेश में मंत्रियों की उतनी ही जगह खाली है, जितनी लोकसभा की सीटें हैं। फिलहाल, लोगों के बीच मंत्रिमंडल में बिलासपुर को जगह मिलेगी या नहीं, मिलेगी तो किसे, इस पर चर्चा चल रही है लोग अपने अपने हिसाब से अनुमान लगा रहे हैं।
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