महापौर की सक्रियता अफसरों, ठेकेदारों को काबू में करने के लिए है या विकास और सफाई को गति देने के लिए?
बिलासपुर। शहर में नालियां बजबजा रही हैं पर स्वच्छता के पायदान में यह कदम और ऊपर उठ गया। चुनाव के बाद निर्माण कार्यों में तेजी आने की उम्मीद थी लेकिन यह रफ्तार और घट गई है। नगर-निगम के सामने बात-बात पर धरना देने वाले कांग्रेसियों की सरकार बन चुकी है और पांच साल संघर्ष करने लोग अब तक जीत के जश्न में डूबे हुए हैं। आश्चर्यजनक रूप से महापौर किशोर राय विधानसभा चुनाव के बाद सक्रिय हो गये हैं। इसके बावजूद नतीजा जमीन पर दिखाई नहीं दे रहा है।
वार्ड 16, 17 और 18 शहर की पॉश कॉलोनियों में गिना जाता है। पिछले कई महीनों से यहां टूटी, बजबजाती नालियां, सड़कों पर फैले मलबे अवैध निर्माण और कचरा फैले रहने की समस्या है। कॉलोनी की विकास समितियों, महिलाओं की समितियों ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और नगरीय निकाय मंत्री शिव डहरिया से भेंट कर उन्हें इन बातों से अवगत कराया था। इनका कहना है कि गायत्री मंदिर से जाने वाली तीनों सड़कों सीएमडी चौराहे तक, व्यापार विहार और श्रीकान्त वर्मा मार्ग तक कूड़ा बाजार बन चुका है। मुख्य सड़कें गड्ढ़ों में तब्दील हो गई हैं। ठंड और गर्मी में ये नाले जाम हैं ऊपर से इनमें स्लैब डालकर लॉक किया जा रहा है। कुछ रसूखदारों ने मुख्य मार्ग पर ही ट्रकों मलबा गिराकर नालियों को बंद रखा है। हाल ही में एक शो रूम सहित कई अवैध व्यावसायिक निर्माण हो गये हैं।
दरअसल, यह समस्या सिर्फ इन तीनों वार्डों में ही नहीं शहर के कई हिस्सों में है। टेलीफोन एक्सचेंज रोड में पुराने बस-स्टैंड से अग्रसेन तक नाले का निर्माण दो साल से अधिक समय से रुका हुआ है। रिंग रोड दो से जतिया तालाब होते हुए जरहाभाठा की ओर जाने वाले नाले का निर्माण कार्य भी रुका पड़ा है। कई और स्थानों पर काम या तो पूरी तरह ठप हैं या फिर बेहद धीमी गति से चल रहे हैं। टूटी-फूटी अधूरी नालियों के ऊपर स्लैब रखने के नाम पर लाखों रुपये के टेंडर बुलाये गए, पर लगता है अधिकारियों, नेताओं से मिलीभगत कर ली और ये सब कागजों में ही पूरे हो गये हैं। दो साल पहले मिट्टी तेल गली से कई परिवारों को बलपूर्वक उजाड़ दिया गया था। इस सड़क का निर्माण कार्य बीते बरस किसी तरह चालू हुआ। इसे स्मार्ट सिटी की पहली स्मार्ट सड़क का नाम दिया गया लेकिन आज इस सड़क में धूल और गड्ढे हैं। चार-छह सौ मीटर की यह सड़क इतनी खराब है कि लोग पैदल और बाइक से भी गुजरना नहीं चाहते।
मेयर की सक्रियता चुनाव परिणाम के बाद ही क्यों?
यह सब तब हो रहा है जब नगर-निगम में सत्तासीन भाजपा को विधानसभा चुनाव में मिली पराजय से सीख लेनी चाहिये। हालांकि, रहस्यमय ढंग से महापौर किशोर राय चुनाव परिणाम आने के बाद कुछ ज्यादा ही सक्रिय हो गये हैं। उन्होंने हाल के दिनों में शहर के कई हिस्सों में चल रहे सड़क, नाली, निर्माण का दौरा किया लेकिन कोई सुधार दिखाई नहीं दे रहा है। न काम की गति में, न गुणवत्ता में। इस सक्रियता के जरिये वे शहर के विकास को रफ्तार देनी चाहते हैं या अधिकारियों और ठेकेदारों को संरक्षण, यह सवाल खड़ा हो गया है। विधायक शैलेष पांडेय ने नगर-निगम अधिकारियों की एक बैठक भी ली थी, जिसके बाद नगर-निगम में कांग्रेसियों का हस्तक्षेप बढ़ने की आशंका भी बनी हुई है। शायद, सक्रियता का एक कारण यह भी हो। भाजपा के ही कई नेता आज कहते हुए पा जायेंगे कि यदि यही सक्रियता महापौर ने विधानसभा चुनाव के छह माह पहले दिखा दी होती तो शायद परिणाम भाजपा के खिलाफ नहीं जाता। पराजित अमर अग्रवाल खुद ही स्वीकार कर चुके हैं सीवरेज को लेकर नाराजगी उनके हार के बड़े कारणों में एक रहा। इसके सहित शहर के लिए लाई गई सभी परियोजनाओं को समय पर, बेहतर तरीके से पूरा कराने की जिम्मेदारी महापौर की ही थी।
सफाई के काम में हेराफेरी जारी
नगर निगम में लायन सर्विसेज को मैकेनिकल और मेनुअल सफाई का ठेका है। नालियों को साफ करने और शहर के विभिन्न स्थानों का कचरा उठाने का काम भी अब भी नगर निगम के ठेकेदारों के ही हाथ में है। इसका बिल करोड़ों में है। कायदे से तो पूरे 250 सफाई कर्मचारियों को इस काम पर लगाया जाना चाहिए पर चार पांच नेताओं ने हाजिरी में खेल करके, मिल-जुलकर इस जनता के टैक्स की राशि की बंदरबांट करने का सालों से सिलसिला चला रखा है। नालियों के जाम होने और कचरे का ढेर दिखने का कारण समझा जा सकता है।
फिर कैसे ग्रेड बढ़ा ओडीएफ का?
एक तरफ तो पॉश कॉलोनियों की नालियां जाम हैं। कचरे नालियों में जमा है दूसरी ओर भारत सरकार ने शहर को ओडीएफ प्लस-प्लस का सर्टिफिकेट जारी कर दिया। बताया गया है कि जनवरी के दूसरे सप्ताह में दिल्ली की टीम यहां निरीक्षण के लिए आई थी। टीम नगर-निगम द्वारा बताये गये आंकड़ों और दिखाई गई व्यवस्था से संतुष्ट हो गई लेकिन इस टीम ने संभवतः स्वतंत्र निरीक्षण नहीं किया या फिर उन जगहों पर जाने से रोक दिया गया, जहां पोल खुल सकती थी।
अधिकारियों का तबादले के बाद संतुष्ट कांग्रेसी
बिलासपुर विधानसभा क्षेत्र लगभग पूरा का पूरा नगर-निगम के ही दायरे में आता है। सीवरेज, खराब सड़कों, अधूरे निर्माण कार्यों, नालियों की बदहाली पर कांग्रेस ने लगातार आंदोलन किये। अधिकारियों पर मनमानी और भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाये, पर जीत के बाद नगर-निगम की ओर झांकने का समय उन्हें नहीं मिल रहा है। विधायक शैलेष पांडेय ने एक बार जरूर नगर-निगम अधिकारियों की बैठक है, लेकिन लोकसभा चुनाव के पहले शहर में कुछ बदलाव नजर आने लगे, इस पर कोई गंभीर पहल अब तक दिखाई नहीं दे रही है। इस बीच इतना जरूर हुआ है कि आयुक्त, भवन शाखा अधिकारी और कुछ इंजीनियरों का तबादला हो गया। एक साथ इतने अधिकारियों का तबादला कांग्रेसियों ने कराया है या सत्ता बदलने के बाद कुछ ने खुद अर्जी दी, यह एक अलग सवाल है- लेकिन इससे पहले से चालू काम में दिक्कतें और बढ़ सकती हैं, परिणाम कुछ समय बाद दिखेगा।
कांग्रेसियों की शिकायत थी कि आयुक्त और अधिकारी उनकी सुनते नहीं थे। अब क्या हालत बदल गई इस पर विचार उन्हें करना चाहिए। जिन वार्डों से शिकायतें ज्यादा आ रही हैं, उनमें भाजपा के पार्षद भी हैं इसका मतलब यह है कि उनकी भी नहीं सुनी जा रही है। महापौर शहर की चिंता में यदि सक्रिय हुए हैं तो इसका नतीजा जमीन पर दिखाई तो दे ही नहीं रहा है। अधिकांश महत्वपूर्ण शाखाओं में नये अधिकारी, प्रभारी आकर बैठ गए हैं, मतलब नगर-निगम में इस समय किसकी चल रही है, यह सवाल बना हुआ है। शहर के लोग पहले की ही तरह हलकान हैं।