अमन सिंह के मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर कर रहे थे सुनवाई
नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के एक आदेश के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई करते हुए प्रधान न्यायाधीश एन वी रमणा ने कहा कि सरकार में जजों को बदनाम करने एक नया चलन दिखाई दे रहा है। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार आने के बाद सन् 2020 में पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के प्रमुख सचिव अमन सिंह और उनकी पत्नी यास्मीन सिंह के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत ईओडब्ल्यू ने प्राथमिकी दर्ज की थी।
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने प्राथमिकी को रद्द कर दिया था। इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में दो विशेष अनुमति याचिकाओं (एसएलपी) के जरिए आरटीआई कार्यकर्ता उचित शर्मा ने अपने वकील सिद्धार्थ दवे के माध्यम से चुनौती दी है। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस रमणा, जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस हिमा कोहली की 3 सदस्य पीठ ने मामले की सुनवाई की। इसी दौरान प्रधान न्यायाधीश ने कहा यह एक नया चलन है…। सरकार ने न्यायाधीशों को बदनाम करना शुरू कर दिया है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है…। हम अदालत में भी देख रहे हैं। यह आजकल का नया चलन है। पहले हम निजी पार्टियों को इस तरह के हथकंडे के साथ देखते थे। अब हर दिन देख रहे हैं।
ज्ञात हो कि छत्तीसगढ़ पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने 25 फरवरी 2020 को अमन सिंह और उनकी पत्नी के खिलाफ एफ आई आर दर्ज की थी। एफआईआर आरटीआई कार्यकर्ता उचित शर्मा की शिकायत के आधार पर दर्ज की गई। इसमें मांग की गई थी कि अमन सिंह और उनकी पत्नी ने आय से अधिक संपत्ति अर्जित की है, जिसकी जांच की जाए।
28 फरवरी 2020 को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक अंतरिम आदेश जारी किया था कि दंपती के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाए। 10 जनवरी 2022 के आदेश में उच्च न्यायालय ने एफआईआर को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोप प्रथम दृष्टया संभावनाओं पर आधारित है और इस आधार पर किसी भी व्यक्ति पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।
उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में यह भी कहा कि उचित शर्मा की शिकायत का स्वयं मुख्यमंत्री द्वारा समर्थन किया गया था और कहा था कि इस मामले की ईओडब्ल्यू जांच करे। इसके बाद 11 नवंबर 2019 को अमन सिंह के खिलाफ प्रारंभिक जांच शुरू की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे ने प्राथमिकी रद्द करने का कारण यह बताया कि आरोप संभावना पर आधारित था। इस पर सीजेआई ने टिप्पणी की कि अदालतों को बदनाम करने की कोशिश मत करो, मैं इस कोर्ट में भी देख रहा हूं। छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने तर्क दिया कि वह उस बिंदु पर बिल्कुल भी दबाव नहीं डाल रहे हैं। तब जस्टिस रमणा ने जवाब दिया कि नहीं हम हर दिन देख रहे हैं। आप एक वरिष्ठ वकील है, आपने इसे हमसे ज्यादा देखा है। दवे ने कहा कि उन्होंने इस मामले में किसी की छवि खराब नहीं की है। कृपया देखें कि यह प्रवृत्ति नहीं है और प्रतिशोध भी नहीं है। यह आरोप आय से अधिक संपत्ति का है।
पीठ ने कहा कि वह इस तरह के उत्पीड़न की अनुमति नहीं दे सकती क्योंकि आरोप अनुमानों पर आधारित हैं। दवे ने कहा कि यह कोई अनुमान नहीं है। उनका संपत्ति संचय चौंका देता है। पीठ ने तब कहा कि विशेष अनुमति याचिका अतिश्योक्तिपूर्ण है। छत्तीसगढ़ सरकार के अधिवक्ता द्विवेदी ने अपनी ओर से तर्क दिया कि प्रतिवादी के पास सेवा में शामिल होने पर 11 लाख रुपए की संपत्ति थी। अब उसने 2.76 करोड रुपए की 7 संपत्तियां खरीदी हैं। पीठ ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 18 अप्रैल की तारीख तय की है।