नई दिल्ली। बिहार में विधानसभा चुनाव 2025 से पहले मतदाता सूची के संशोधन को लेकर सियासी विवाद गहरा गया है। विपक्षी दलों, जिसमें राष्ट्रीय जनता दल (RJD), कांग्रेस और अन्य सहयोगी शामिल हैं, ने भारत निर्वाचन आयोग (ECI) से मुलाकात कर इस प्रक्रिया को “वोटबंदी” करार दिया और आरोप लगाया कि यह मतदाताओं, खासकर हाशिए पर रहने वाले समुदायों के वोटिंग अधिकारों को दबाने की कोशिश है। उनका दावा है कि मतदाता पहचान पत्र को आधार से जोड़ने की आवश्यकता और जल्दबाजी में की जा रही यह प्रक्रिया पारदर्शी नहीं है।

निर्वाचन आयोग ने स्पष्ट किया कि आधार को मतदाता पहचान पत्र से जोड़ना स्वैच्छिक है, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है, और इसका उद्देश्य मतदाता सूची से डुप्लिकेट या फर्जी प्रविष्टियों को हटाना है। यह संशोधन प्रक्रिया 29 अक्टूबर 2024 को शुरू हुई थी, और दावों व आपत्तियों के लिए 28 नवंबर 2024 तक की समय सीमा थी। विपक्ष ने इस समय सीमा को बढ़ाने और प्रक्रिया में अधिक पारदर्शिता की मांग की है ताकि कोई भी वास्तविक मतदाता वंचित न रहे।

विपक्षी नेता तेजस्वी यादव ने इस प्रक्रिया को “लोकतंत्र को कमजोर करने की कोशिश” बताया और आरोप लगाया कि यह गरीबों और वंचितों के मताधिकार को छीनने की साजिश है। दूसरी ओर, निर्वाचन आयोग ने कहा कि यह प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 326 और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के तहत नियमों के अनुसार हो रही है, जिसमें बुजुर्गों, विकलांगों और कमजोर समूहों को परेशान न करने का ध्यान रखा जाएगा।

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