बिलासपुर। बलात्कार की शिकार एक नाबालिग लड़की को गर्भधारण हो जाने के बाद छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट से गर्भपात की अनुमति मिल गई है। डॉक्टरों की मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर कोर्ट ने यह आदेश दिया है। पीड़िता की पहचान गोपनीय रखने के निर्देश भी कोर्ट ने दिए हैं।
यह आदेश हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति अमितेन्द्र किशोर प्रसाद की एकलपीठ ने सुनाया। उन्होंने स्पष्ट किया कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 की धारा 10ए के तहत पीड़िता की पहचान उजागर नहीं की जा सकती।
पीड़िता ने याचिका दाखिल कर गर्भपात की इजाजत मांगी थी। प्रारंभिक सुनवाई के बाद कोर्ट ने पीड़िता की मेडिकल जांच कराकर रिपोर्ट पेश करने को कहा था। रिपोर्ट में बताया गया कि गर्भावस्था 10 सप्ताह और 4 दिन की है तथा भ्रूण जीवित है। लेकिन पीड़िता की उम्र कम होने और मामला न्यायालय में लंबित होने की वजह से डॉक्टरों ने पहले गर्भपात की अनुमति नहीं दी थी।
इस बीच, पीड़िता को बढ़ती गर्भावस्था से स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं होने लगीं। डॉक्टरों ने चेतावनी दी कि यदि जल्द ऑपरेशन नहीं किया गया तो उसकी जान को खतरा हो सकता है। राज्य सरकार की ओर से कोर्ट को बताया गया कि सीएमएचओ ने मेडिकल रिपोर्ट सौंप दी है, जिसमें कहा गया है कि पीड़िता का गर्भपात किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के ‘सुचिता श्रीवास्तव बनाम चंडीगढ़ प्रशासन‘ सहित कई फैसलों का हवाला दिया गया, जिनमें विशेष परिस्थितियों में गर्भपात की अनुमति दी गई है। इसके आधार पर हाईकोर्ट ने जिला अस्पताल को निर्देशित किया कि पीड़िता अपनी मां या वैध अभिभावक के साथ अस्पताल में उपस्थित हो। डॉक्टरों की टीम दोबारा उसकी मानसिक और शारीरिक स्थिति की जांच करेगी। यदि वह गर्भपात के लिए सक्षम पाई जाती है, तो तुरंत ऑपरेशन किया जाएगा।
डीएनए सैंपल सुरक्षित रखा जाएगा
कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि भ्रूण का डीएनए सैंपल POCSO एक्ट 2020 की धारा 6(6) के तहत साक्ष्य के रूप में सुरक्षित रखा जाए। आरोपी के खिलाफ मामला अभी भी लंबित है। पूरी प्रक्रिया में किसी प्रकार की देरी न हो, इसके लिए सीएमएचओ को व्यक्तिगत रूप से निगरानी करने का आदेश दिया गया है।