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छत्तीसगढ़ भाजपा और उसके सहयोगी संगठनों बजरंग दल तथा विश्व हिंदू परिषद (विहिप) की धर्मांतरण विरोधी राजनीति ने पार्टी को केरल में जबरदस्त राजनीतिक झटका दिया है। केरल की दो ननों को छत्तीसगढ़ में गिरफ्तार करने की घटना ने भाजपा की केरल इकाई को बैकफुट पर ला दिया, जहां पार्टी ईसाई समुदाय के बीच अपनी पैठ बढ़ाने की कोशिश कर रही है। यह मामला न केवल अंतर-राज्यीय राजनीति का नमूना है, बल्कि यह दर्शाता है कि कैसे स्थानीय स्तर पर कार्यकर्ताओं में पैदा किया गया जोश राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी की रणनीति को प्रभावित कर सकता है।

सीधे मोदी और शाह ने दी दखल?

मालूम हो कि 25 जुलाई 2025 को छत्तीसगढ़ में दुर्ग जिले की पुलिस ने केरल की दो ननों, प्रीति मैरी और वंदना फ्रांसिस को जबरन धर्मांतरण और मानव तस्करी के आरोप में गिरफ्तार किया था। ये ननें ईसाई मिशनरी गतिविधियों से जुड़ी हुई थीं। गिरफ्तारी के पीछे सत्तारूढ़ दल के सहयोगी संगठनों का अति उत्साह था, जो धर्मांतरण विरोधी अभियान चला रहे थे। ननों को नौ दिनों तक न्यायिक हिरासत में रखा गया, जिसके बाद उन्हें जमानत पर रिहा किया गया। इस रिहाई में भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व की भूमिका महत्वपूर्ण बताई जा रही है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का हस्तक्षेप शामिल था।

केरल भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष राजीव चंद्रशेखर को खुद छत्तीसगढ़ पहुंचना पड़ा, ताकि मामले को सुलझाया जा सके। उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा कि पार्टी को यकीन है कि ननों पर लगे धर्मांतरण के आरोप सच नहीं हैं। उनके बयान ने संघ परिवार को जरूर असहज किया होगा, लेकिन केरल में ईसाई समुदाय को लुभाने के लिए जरूरी था।

केरल में भाजपा की राजनीति

केरल में ईसाई समुदाय की आबादी करीब 18 प्रतिशत है, जो राज्य की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाती है। यहां विधानसभा चुनाव कुछ महीनों में होने वाले हैं (2026 की शुरुआत में), जबकि स्थानीय निकाय चुनाव 2025 के अंत में प्रस्तावित हैं। भाजपा का केरल में प्रतिनिधित्व बहुत कम है। हाल के लोकसभा चुनावों में पार्टी ने अपना पहला सीट (त्रिसूर) जीता और वोट शेयर 16.68 प्रतिशत तक पहुंचा, जो पहले से 3 प्रतिशत अधिक था। वहां भाजपा अपना समर्थन बढ़ाने में लगी है लेकिन छत्तीसगढ़ में केरल के ननों की गिरफ्तारी ने उसमें रोड़ा डाल दिया।

ईसाई समुदाय में इस गिरफ्तारी से गुस्सा फैला। भाजपा को अल्पसंख्यक विरोधी बताकर वहां के  कुछ मुस्लिम संगठनों जैसे एसडीपीआई और जमात-ए-इस्लामी ने इसका फायदा उठाने की कोशिश भी की। भाजपा के राज्य उपाध्यक्ष शोन जॉर्ज ने कहा, “एसडीपीआई और जमात-ए-इस्लामी ईसाई आंदोलन में घुसपैठ कर रहे हैं। ईसाई चर्चों को राजनीतिक इस्लाम से खतरा है, और ईसाइयों को सतर्क रहना चाहिए।” पार्टी को डर है कि ईसाई-मुस्लिम गठजोड़, केरल की बहुलतावादी राजनीति में उसके खिलाफ हो सकता है।

डैमेज कंट्रोल की रणनीति

इस झटके से उबरने के लिए केरल भाजपा ने बहुआयामी रणनीति अपनाई है। पार्टी ईसाई पादरियों से मिलकर राष्ट्रीय नेतृत्व की सकारात्मक भूमिका को उजागर कर रही है। एक भाजपा नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “हम चर्चों को बता रहे हैं कि केवल भाजपा ने ननों की जमानत के लिए ईमानदार प्रयास किए। केरल के कई बिशप ने हमारी पार्टी की भूमिका को स्वीकार किया है।” आर्कबिशप जोसेफ पंप्लानी ने भी भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व की सराहना की, जबकि बिशप पॉली कन्नूक्कादन ने केंद्र और छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकारों की आलोचना की, कहते हुए कि उन्होंने रिहाई के लिए कोई कदम नहीं उठाया।

पार्टी ने अपनी राज्य इकाई को पुनर्गठित किया है, जिसमें केंद्रीय मंत्री जॉर्ज कुरियन, राष्ट्रीय सचिव अनिल के एंटनी, राज्य महासचिव अनूप एंटनी जोसेफ और शोन जॉर्ज जैसे ईसाई नेताओं को कोर कमेटी में शामिल किया गया है, जो अभूतपूर्व कदम है। दिसंबर 2023 में शुरू की गई ‘स्नेह यात्रा’ अभियान को तेज किया गया है, जो ईसाई समुदाय तक पहुंचने का माध्यम है। अप्रैल 2023 में मोदी ने आठ बिशपों से मुलाकात कर समर्थन मांगा था, और अब ‘विकसित केरलम’ नरेटिव के जरिए युवा ईसाइयों को बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर आकर्षित करने की कोशिश हो रही है।

ननों की रिहाई के बाद कई बिशप और गैर-कैथोलिक संप्रदायों के पादरी भाजपा मुख्यालय पहुंचे और आभार जताया, जो दर्शाता है कि समुदाय में विभाजन तो है, पर वह पूरी तरह से पार्टी के खिलाफ नहीं है।

धर्मांतरण विरोधी राजनीति का प्रभाव

यह मामला भाजपा की राष्ट्रीय स्तर पर चल रही धर्मांतरण विरोधी राजनीति का है, जो छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में संघ परिवार के संगठनों द्वारा जोर-शोर से लागू की जा रही है। लेकिन केरल जैसे राज्य, जहां अल्पसंख्यक समुदाय बहुल हैं, में यह बैकफायर कर सकती है। पार्टी को अब संतुलन बनाना होगा—एक तरफ हिंदुत्ववादी आधार को संतुष्ट रखना, दूसरी तरफ अल्पसंख्यकों को लुभाना।

मामला यह भी दिखाता है कि स्थानीय राजनीति राष्ट्रीय रणनीति को कैसे प्रभावित कर सकती है। यदि भाजपा डैमेज कंट्रोल में सफल रही, तो केरल में उसकी संभावनाएं मजबूत हो सकती हैं; अन्यथा, यह चुनावी नुकसान का कारण बन सकता है।

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