करगीरोड (कोटा)।/ रामनारायण यादव/ नगर के प्रसिद्ध कोटसागर तालाब में दुर्गा मंदिर के पास 14 साल बाद ब्रह्मकमल का फूल खिला है। बीते दो दिनों से आधी रात में अपनी प्रकृति के अनुसार इसकी पंखुड़ियां फैलती हैं और दिन होते ही सिमट जाती हैं। लोग सैकड़ों की संख्या में यहां पहुंचकर यह अद्भुत नजारा देख रहे हैं।
इस फूल को हिमालयी फूलों का सम्राट भी कहा जाता है। ब्रह्मकमल हिमालय की वादियों में 3 से 5 हजार मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है। इस दुर्लभ पुष्प का वानस्पतिक नाम सोसेरिया ओबोवेलाटा है।
ब्रह्मकमल कमल की अन्य प्रजातियों के विपरीत पानी में नहीं वरन धरती पर खिलता है। उत्तराखंड का राज्य पुष्प भी घोषित किया गया है। वर्तमान में भारत में इसकी लगभग 60 प्रजातियों की पहचान की गई है जिनमें से 50 से अधिक प्रजातियाँ हिमालय के ऊँचाई वाले क्षेत्रों में ही पाई जाती हैं। उत्तराखंड में यह विशेषतौर पर पिण्डारी से लेकर चिफला, रूपकुंड, हेमकुण्ड, ब्रजगंगा, फूलों की घाटी, केदारनाथ तक पाया जाता है।
भारत के अन्य भागों में इसे और भी कई नामों से पुकारा जाता है जैसै – हिमाचल में दूधाफूल, कश्मीर में गलगल और उत्तर-पश्चिमी भारत में बरगनडटोगेस। साल में एक बार खिलने वाले गुल बकावली को भी कई बार भ्रमवश ब्रह्मकमल मान लिया जाता है।
साल में एक ही बार यह फूल खिलता है पर कोटा के लोगों ने इसे बरसों बाद देखा। जानकार कहते हैं कि 14 साल बाद यह मौका आया है।
करगीरोड कोटा को कोटेश्वर महादेव की नगरी कहा जाता है। कोटसागर यहां का विशाल तालाब है, जो कभी नहीं सूखा। हर वर्ष यहां मेला भी लगता है। ब्रह्मकमल खिलने की घटना ने इसकी महत्ता और सौंदर्य को और बढ़ा दिया है। रात में लोग यहां पहुंच रहे हैं और खिलता हुआ देखने के लिये आतुरता दिखा रहे हैं।
हालांकि बहुत सी पौराणिक और धार्मिक मान्यताओं के चलते भी लोग इस फूल के ‘दर्शन’ के लिये लालायित रहते हैं। इन मान्यताओं के अनुसार ब्रह्मा धारण करते हैं इसलिये ब्रह्म कमल कहा जाता है। वैसे तो फूलों को पूजा के दौरान देवों को अर्पित किया जाता है पर इस फूल को स्वयं में देव मानकर लोग पूजा भी करते हैं। लोग इस फूल से मन्नत पूरी होने का विश्वास भी रखते हैं। एक पौराणिक कथा के मुताबिक द्रौपदी ने इस सफेद कमल को सबसे पहले देखा था और अर्जुन से इसे लाने के लिये कहा था।
कोटसागर तालाब में दुर्गा मंदिर का निर्माण रिटायर्ड आईजी केसी अग्रवाल के पूर्वजों ने कराया था। वर्षों से रविंद्र शर्मा यहां के पुजारी हैं। उनके पास ब्रह्मकमल पौधा अग्रवाल ने भेजा था। बुधवार रात 11 बजे के बाद से दो ब्रह्मकमल एक साथ खिल उठे। ब्रह्मकमल खिलने की जानकारी लगते ही लोगों की भीड़ देखने के लिए उमड़ पडी़। गुरुवार की रात में भी एक दुर्लभ ब्रह्मकमल खिला।