बिलासपुर। राज्य सरकार द्वारा  प्रदेशभर की सहकारी समितियों को भंग करने के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज उच्च न्यायालय ने सुनवाई की। सुनवाई के बाद कोर्ट ने राज्य शासन के सहकारी समितियों को भंग करने हेतु जारी आदेश को निरस्त कर दिया है। यह राज्य सरकार के लिए उच्च न्यायालय की ओर से एक और बड़ा झटका है। दो दिन पहले ही भीमा मंडावी हत्याकांड की जांच को हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के खिलाफ फैसला देते हुए एनआईए को सौंप दिया था।

सहकारी समितियों को भंग करने के मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रामचंद्र मेनन व पी पी साहू की युगल पीठ द्वारा की गई। 30 अगस्त 2019 को प्रदेश सरकार ने राज्य भर की 1333 साख सहकारी समितियों को भंग करने का आदेश जारी कर दिया था। इसके साथ ही नई समितियों का पुनर्गठन करने हेतु प्रावधान सरकार ने लाया था। इसको प्रदेशभर के सहकारी समितियों के संचालकों ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। मामले में 170 से ज्यादा याचिकाएं दाखिल की गई थी। इन पर एक साथ सुनवाई हुई। सुनवाई के बाद कोर्ट ने इन याचिकाओं को स्वीकार करते हुए राज्य शासन के आदेश को निरस्त कर दिया है। कोर्ट ने यह माना है कि प्रजातांत्रिक तरीके से चुनी हुई समितियों को भंग करना गलत है।

दो दिन पहले ही हाईकोर्ट ने भीमा मंडावी हत्याकांड की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी, एनआईए को सौंपने का निर्देश दिया था। राज्य सरकार इसके पक्ष में नहीं थी। चिटफंड घोटाले में पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के बेटे अभिषेक सिंह पर दर्ज मामले में हाईकोर्ट ने दंडात्मक कार्रवाई पर रोक लगाई थी। इसके अलावा अनेक मामलों में आरोपियों को जमानत और राहत मिल चुकी है जिन पर राज्य की जांच एजेंसियों ने अपराध दर्ज किये हैं।

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