लेखक: प्राण चड्ढा

अली हुसैन शुक्ला का होटल नाम और पहचान का मोहताज नहीं था। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर शहर के ह्रदय स्थल, गोलबाजार में स्थित यह होटल, बिरयानी, कीमा के समोसे और कबाब आदि के लिए प्रसिद्ध था। चार दशक पहले यह होटल स्थानीय लोगों के बीच एक प्रतिष्ठित स्थान था। यहां फुल, हाफ और पाव (एक चौथाई) बिरयानी भी मिलती थी। कोरमा इतना लाजवाब होता था कि वैसा स्वाद केवल ईद पर फिरोज़ कुरैशी की अम्मी के हाथों का बनता था।

ब्राह्मण और मांसाहार

उस समय मांसाहार हिंदुओं में कम प्रचलित था और ब्राह्मण तो इससे घृणा करते थे। इसके बावजूद इस होटल को ‘अली हुसैन शुक्ला होटल’ के नाम से जाना जाता था। इसके दो प्रमुख कारण थे: पहला, कुछ ब्राह्मण गुप्त रूप से यहां आकर भोजन करते थे और दूसरा, होटल के मालिक अली हुसैन की टोपी के ऊपर उनकी चोटी झूलती रहती थी, जिससे लोग इसे विप्रवर की चोटी के साथ व्यंग्य में तुलना करते थे।

होटल की खासियत

सुबह के समय यहां पाया और नाद खाने के लिए टेबल पर इंतजार करना पड़ता था। जो लोग गुप्त रूप से भोजन करना चाहते थे, वे ऊपर की मंजिल में टेबल-कुर्सी पर बैठकर भोज करते थे। बिलासपुर के इतिहास में साम्प्रदायिकता को कहीं जगह नहीं मिली, और इस होटल ने हमेशा विभिन्न समुदायों को जोड़े रखा। आज भी इस तरह के होटल की कमी इस शहर में महसूस की जाती है।

कावड़ यात्रा और पहचान

हाल ही में कुछ राज्यों में कावड़ यात्रा के दौरान दुकानों पर मालिक का नाम और जाति लिखने का आदेश जारी किया गया है। इस कदम को राजनीतिक उद्देश्य से प्रेरित माना जा रहा है। हालांकि, यह सच हो सकता है या गलत भी।

स्वच्छता और गुणवत्ता की आवश्यकता

इससे बेहतर होगा कि दुकानदार अपनी पहचान लिखने के साथ-साथ साफ-सफाई और गुणवत्ता का ध्यान रखें। रेट भी उचित रखें ताकि सभी लोग बिना किसी झिझक के सामान खरीद सकें। कावड़ यात्रा के रूट पर सावन के दौरान मांसाहार पर रोक कड़ाई से लागू होनी चाहिए ताकि पवित्रता का माहौल बना रहे। कावड़ियों को शुद्ध पेयजल नि:शुल्क मिले और उनके लिए जगह-जगह बेहतर लंगर का इंतजाम हो।

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