26 जुलाई 2025 को छत्तीसगढ़ के दुर्ग पुलिस स्टेशन में केरल की दो ईसाई ननों को हिरासत में लिया गया। उन पर मानव तस्करी और जबरन धर्म परिवर्तन के गंभीर आरोप लगाए गए। लेकिन क्या ये आरोप सच हैं, या यह एक सुनियोजित साजिश का हिस्सा है? इस घटना ने देशभर में चर्चा छेड़ दी है, खासकर ईसाई समुदाय के बीच, जो इसे अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ते हमलों का हिस्सा मान रहा है।
क्या हुआ था?
छत्तीसगढ़, जहां भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सरकार है, वहां स्थानीय बजरंग दल के सदस्यों ने इन ननों पर आदिवासी लड़कियों को जबरन धर्म परिवर्तन के लिए ले जाने का आरोप लगाया। लेकिन जिन लड़कियों को कथित तौर पर “तस्करी” के लिए ले जाया जा रहा था, उन्होंने खुद बयान दिया कि वे अपनी मर्जी से ननों के साथ गई थीं, क्योंकि वे नर्सिंग का प्रशिक्षण लेना चाहती थीं। लड़कियों के माता-पिता ने भी यही बात कही कि उन्होंने अपनी बेटियों को बेहतर नौकरी के अवसरों के लिए जाने की इजाजत दी थी।
इसके बावजूद, पुलिस ने बजरंग दल की शिकायत को गंभीरता से लिया और ननों को हिरासत में ले लिया। खबरों के मुताबिक, बजरंग दल की एक सदस्य, ज्योति शर्मा, ने ननों के समर्थन में आए लोगों को धमकाया और उन पर हमला भी किया। हैरानी की बात यह है कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने पुलिस और बजरंग दल का बचाव किया, ननों का नहीं।
ईसाई समुदाय का गुस्सा
इस घटना के विरोध में 3 अगस्त को केरल के कोझिकोड में ईसाई समुदाय ने एक बड़ा मार्च निकाला। केरल में ईसाई आबादी अच्छी-खासी है, और यह मामला वहां राजनीतिक रूप से भी गर्म हो गया। आखिरकार, केरल के सांसदों के एक समूह ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की, जिसके बाद ननों को जमानत मिली। लेकिन यह जमानत इसलिए मिली, क्योंकि बीजेपी केरल में ईसाई समुदाय को नाराज नहीं करना चाहती, खासकर जब अगले साल वहां विधानसभा चुनाव होने हैं।
जब ननें केरल लौटीं, तो उनका स्वागत करने वालों में बीजेपी के केरल प्रमुख राजीव चंद्रशेखर भी थे। यह भी न भूलें कि भाजपा गोवा जैसे राज्यों में सत्ता में है और मेघालय तथा नागालैंड जैसे राज्यों में उसके गठबंधन सहयोगी हैं, जहाँ ईसाई आबादी बड़ी है। हालाँकि भाजपा को मुसलमानों को स्टीरियोटाइप करना, भारत के एकमात्र मुस्लिम बहुल राज्य को रातोंरात केंद्र शासित प्रदेश में बदलना राजनीतिक रूप से सुविधाजनक लग सकता है, लेकिन वह ईसाइयों को खुलेआम निशाना बनाने का जोखिम नहीं उठा सकती क्योंकि इससे न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में तुरंत आलोचना होगी।
अल्पसंख्यकों पर सवाल
यह पहली बार नहीं है जब अल्पसंख्यकों, खासकर ईसाइयों, पर इस तरह के आरोप लगे हैं। 1999 में ओडिशा में मिशनरी ग्राहम स्टेन्स और उनके दो छोटे बच्चों की बजरंग दल के नेता दारा सिंह द्वारा हत्या कर दी गई थी। हाल ही में, 80 साल के बीमार पादरी फादर स्टैन स्वामी को नक्सली समर्थक बताकर यूएपीए के तहत जेल में डाल दिया गया, जहां उनकी मृत्यु हो गई। जून 2025 में, महाराष्ट्र के सांगली से बीजेपी विधायक गोपीचंद पडलकर ने ईसाई पादरियों पर हिंसा के लिए 3 लाख से 11 लाख रुपये तक का इनाम देने की बात कही।
ये घटनाएं दिखाती हैं कि ईसाई समुदाय के खिलाफ एक सुनियोजित अभियान चल रहा है। बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) जैसे संगठन “घर वापसी” के नाम पर आदिवासी ईसाइयों को जबरन हिंदू धर्म में वापस लाने की कोशिश कर रहे हैं। वहीं, संविधान में धर्म की स्वतंत्रता और धर्म परिवर्तन का अधिकार दिया गया है, लेकिन इसे चुनिंदा तरीके से लागू किया जा रहा है। ईसाई धर्म अपनाने को “जबरन” और गैरकानूनी माना जाता है, जबकि हिंदू धर्म में वापसी को “स्वैच्छिक” और सही ठहराया जाता है।
क्या कहते हैं आंकड़े?
हिंदुत्व संगठनों का दावा है कि ईसाई मिशनरियां बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन करा रही हैं। लेकिन 2024 में ‘ओपन डोर्स’ नामक वैश्विक संगठन ने भारत को ईसाई उत्पीड़न के मामले में 11वें स्थान पर रखा। जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि 1971 में भारत में ईसाई आबादी 2.6% थी, जो 2025 में घटकर 2.3% हो गई है। फिर भी, यह प्रचार किया जा रहा है कि ईसाई धर्म में जबरन धर्मांतरण हो रहा है।
पीएम मोदी का दोहरा रवैया?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल दिसंबर में कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया के क्रिसमस समारोह में हिस्सा लिया और यीशु मसीह के प्रेम, शांति और भाईचारे की शिक्षाओं की तारीफ की। 2023 में भी उन्होंने क्रिसमस पर प्रमुख ईसाई नेताओं को अपने घर पर चाय के लिए बुलाया। लेकिन सवाल यह है कि अगर सरकार शांति और भाईचारे की बात करती है, तो बजरंग दल जैसे संगठनों को खुली छूट क्यों दी जा रही है? ननों और मिशनरियों को “राष्ट्र-विरोधी” और “अपराधी” कहकर क्यों बदनाम किया जा रहा है?
फोटो सेशन से आगे बढ़ना होगा
ईसाई समुदाय के खिलाफ बढ़ते हमले चिंता का विषय हैं। अगर प्रधानमंत्री मोदी वाकई में ईसाई समुदाय का भरोसा जीतना चाहते हैं, तो उन्हें सिर्फ चाय और फोटो सेशन से आगे बढ़कर बजरंग दल जैसे संगठनों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी होगी। यह समय है कि भारत अपनी अंतर-धार्मिक सौहार्द की परंपरा को फिर से मजबूत करे, न कि उसे और कमजोर होने दे।
(रायदीप सरदेसाई, “Nuns Arrest: After Muslims, Target Christians?”, इंडिया टुडे, 15 अगस्त 2025)