5 घंटे की सर्जरी के बाद स्वास्थ्य में तेजी से सुधार, सरकारी अस्पताल की टीम को आप दे सकते हैं दाद
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ के दूरस्थ आदिवासी इलाके से ताल्लुक रखने वाली 25 वर्षीय बैगा जनजाति की महिला को एक दुर्लभ प्रकार का कैंसर होने की पुष्टि हुई। लेकिन राहत की बात यह रही कि सिम्स (छत्तीसगढ़ इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज), बिलासपुर की टीम ने बिना किसी खर्च के इस जटिल कैंसर का सफल इलाज किया। अब महिला की हालत तेजी से बेहतर हो रही है।
महिला के गले के दाईं ओर नींबू के आकार की सूजन लंबे समय से धीरे-धीरे बढ़ रही थी। हाल के दिनों में उसमें रक्तस्राव भी होने लगा। स्थानीय डॉक्टर ने तुरंत ही उसे सिम्स रेफर कर दिया। वहां कराई गई एमआरआई, सीटी स्कैन और एफएनएसी (Fine Needle Aspiration Cytology) रिपोर्ट से पता चला कि उसे ‘हर्थल सेल कार्सिनोमा’ (Hurthle Cell Carcinoma) नामक एक बहुत ही दुर्लभ कैंसर है, जो शुरुआत में थायरॉयड ग्रंथि से जुड़ा माना गया।
महिला का पूरा शरीर स्कैन कर यह सुनिश्चित किया गया कि कैंसर कहीं और नहीं फैला है। इसके बाद ईएनटी विभागाध्यक्ष प्रो. डॉ. आरती पांडे के नेतृत्व में तुरंत सर्जरी की योजना बनाई गई। सर्जरी में डॉ. वी.बी. साहू, डॉ. श्वेता मित्तल, डॉ. ज्योति वर्मा और पीजी स्टूडेंट्स की टीम शामिल रही।
सर्जरी के दौरान बड़ा खुलासा – कैंसर थायरॉयड में नहीं, बल्कि लार ग्रंथि से फैला था
करीब 5 घंटे तक चले इस ऑपरेशन में पता चला कि ट्यूमर थायरॉयड नहीं, बल्कि पैरोटिड ग्रंथि (लार ग्रंथि) से निकला है। पूरी ग्रंथि को निकालते हुए गले की सर्जरी (नेक डिसेक्शन) की गई।
एनेस्थीसिया विभाग की प्रमुख डॉ. मधुमिता मूर्ति के नेतृत्व में डॉ. श्वेता कुजूर ने एनेस्थीसिया की जिम्मेदारी संभाली। इस दौरान दीपा, रितु और देव जी जैसे नर्सिंग स्टाफ ने भी पूरी प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
निशुल्क इलाज – लाखों के खर्च से बची महिला
जब सर्जरी की जानकारी सिम्स के अधिष्ठाता डॉ. रमणेश मूर्ति को हुई और उन्हें यह पता चला कि महिला बैगा जनजाति से है, तो उन्होंने तत्काल सर्जरी को निशुल्क कराने का निर्देश दिया। चिकित्सा अधीक्षक डॉ. लखन सिंह ने भी पूरी प्रक्रिया को सुचारु रूप से संचालित किया। नतीजा यह रहा कि लाखों रुपए की जांचें, ऑपरेशन और भर्ती का पूरा खर्च सरकारी अस्पताल ने वहन किया।
अब महिला की हालत पहले से काफी बेहतर है और इलाज के बाद वह धीरे-धीरे सामान्य जीवन की ओर लौट रही है।
सिम्स ने दिखाई भरोसे और समर्पण की मिसाल
सरकारी अस्पतालों और डॉक्टरों को लेकर आम धारणा यही रही है कि वहाँ लापरवाही होती है—डॉक्टर समय पर नहीं पहुंचते, इलाज में देरी होती है, और कई बार गलत इलाज के आरोप भी लगते हैं। CIMS, बिलासपुर में भी पूर्व में ऐसी घटनाएं सामने आई हैं, जिनमें मरीजों की मौत के बाद परिजनों ने हंगामा किया और गंभीर आरोप लगाए। बावजूद इसके, बिलासपुर का CIMS आज भी छत्तीसगढ़ के सबसे भरोसेमंद चिकित्सा संस्थानों में गिना जाता है।
इसकी वजह है, यहाँ काम करने वाले डॉक्टरों, नर्सों और स्टाफ की वह निस्वार्थ सेवा भावना, जो निजी अस्पतालों की अंधी मुनाफाखोरी के सामने आज भी एक मजबूत विकल्प बनकर खड़ी है।
यह मामला सिर्फ एक महिला मरीज की सफल सर्जरी का नहीं है, बल्कि यह एक मिसाल है कि अगर संसाधन, नेतृत्व और टीम भावना सही दिशा में हों तो सरकारी संस्थान भी असंभव को संभव कर सकते हैं। दुर्लभ कैंसर की पहचान से लेकर पांच घंटे लंबे जटिल ऑपरेशन और पोस्ट-ऑप देखभाल तक, यह पूरी प्रक्रिया एक सशक्त टीम, उत्कृष्ट चिकित्सा प्रबंधन और प्रशासनिक संवेदनशीलता का उदाहरण है।
CIMS बिलासपुर ने यह साबित किया है कि इनके जैसे सरकारी अस्पताल सिर्फ इलाज का ठिकाना नहीं, आशा और विश्वास की जगह भी हो सकते हैं।