एक जवान भी शहीद

रायपुर। छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले के घने और दुर्गम अबूझमाड़ इलाके में सुरक्षाबलों को एक बड़ी कामयाबी मिली है। जिला रिजर्व गार्ड (डीआरजी) के जवानों ने एक व्यापक माओवादी विरोधी अभियान में 27 माओवादियों को ढेर कर दिया। इनमें सीपीआई (माओवादी) के महासचिव बसव राजू (वास्तविक नाम नंबाला केशव राव) के भी मारे जाने की संभावना जताई जा रही है। उनके सिर पर 1.5 करोड़ रुपये का इनाम था। इस भीषण मुठभेड़ में एक डीआरजी जवान शहीद हुआ है।

यह ऑपरेशन 15 दिनों की योजना के बाद, पुख्ता खुफिया जानकारी के आधार पर शुरू किया गया था। जानकारी के अनुसार, बसव राजू ओरछा क्षेत्र में मौजूद था, जो नारायणपुर जिला मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर और रायपुर से 300 किलोमीटर दूर है। इस क्षेत्र को माओवादियों का गढ़ माना जाता है।

बस्तर रेंज के आईजी पी सुंदरराज ने बताया कि घटनास्थल से 27 नक्सलियों के शव और बड़ी मात्रा में हथियार बरामद किए गए हैं। उन्होंने कहा कि अभियान अभी जारी है और इलाके में तलाशी ली जा रही है। इस मुठभेड़ को अबूझमाड़ क्षेत्र में अब तक का सबसे बड़ा अभियान बताया जा रहा है।

बसव राजू की पहचान की प्रक्रिया जारी
सूत्रों के अनुसार, कई आत्मसमर्पण कर चुके माओवादी कैडरों ने मारे गए व्यक्ति की पहचान बसव राजू के रूप में की है। हालांकि, अंतिम पुष्टि डीएनए परीक्षण के बाद ही होगी। एक वरिष्ठ खुफिया अधिकारी ने कहा, “माओवादी संगठन नेतृत्वहीन हो गया है। यह नक्सल विरोधी लड़ाई में ऐतिहासिक दिन है। हमने उनका शीर्ष नेता खत्म कर दिया है।”

मुख्यमंत्री और गृहमंत्री ने की सराहना
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने कहा, “यह ऑपरेशन मुख्य रूप से डीआरजी ने अंजाम दिया। मैं उनकी बहादुरी को सलाम करता हूँ। माओवादियों से आत्मसमर्पण करने की अपील हम लगातार करते रहे हैं। अब उन्हें समझना चाहिए कि हिंसा का रास्ता छोड़कर मुख्यधारा में आना ही बेहतर है।”
गृह मंत्री विजय शर्मा ने बताया कि यह अभियान 72 घंटे तक चला और इसमें माओवादियों को करारा जवाब मिला।

बसव राजू: माओवादी आंदोलन का शीर्ष चेहरा
70 वर्षीय बसव राजू आंध्र प्रदेश के विजयनगरम जिले के जियन्नापेटा गांव के निवासी थे। उन्होंने वारंगल के क्षेत्रीय इंजीनियरिंग कॉलेज (अब NIT) से बी.टेक की पढ़ाई की थी। छात्र जीवन में वह रेडिकल स्टूडेंट्स यूनियन से जुड़े और 1985 में भूमिगत हो गए।

उन्होंने माओवादी संगठन पीपुल्स वार ग्रुप में कई बड़े पदों पर काम किया और 2018 में महासचिव बने, जब गणपति ने पद छोड़ा था। वह न केवल वैचारिक नेता थे, बल्कि कई बड़े हमलों के मास्टरमाइंड भी रहे।
2003 में आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू पर अलीपिरी बम हमला और 2010 में दंतेवाड़ा में 76 सीआरपीएफ जवानों की हत्या में उसकी प्रमुख भूमिका थी। उसे विस्फोटकों और आईईडी में महारत हासिल थी, और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की सबसे वांछित सूची में वह सबसे ऊपर था।

तेलुगु जड़ों को झटका
एक खुफिया अधिकारी के अनुसार, बसव राजू की मौत माओवादी संगठन की तेलुगु जड़ों को कमजोर करेगी। 2011 में किशनजी की मृत्यु के बाद यह दूसरा बड़ा झटका माना जा रहा है। “उनके जैसा कैडरों को एकजुट करने वाला दूसरा नहीं है। इससे संगठन का मनोबल गिरेगा,” अधिकारी ने कहा।

जमीन से जुड़ा था जीवन
बसव राजू ने बचपन में कबड्डी खेला और पढ़ाई में भी अव्वल रहा। 1980 में एबीवीपी के छात्रों से झड़प में उनकी गिरफ्तारी हुई, जो उनकी इकलौती गिरफ्तारी मानी जाती है। इसके बाद उसने भूमिगत रहकर माओवादी आंदोलन को दिशा दी।

अबूझमाड़ में निर्णायक मोड़
अबूझमाड़ जैसे कठिन और दुर्गम क्षेत्र में डीआरजी का यह अभियान सुरक्षा बलों के लिए एक निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है। सैनिकों की वापसी में अभी समय लगेगा, लेकिन यह स्पष्ट है कि छत्तीसगढ़ पुलिस, डीआरजी और अन्य सुरक्षा बल माओवादी हिंसा के खात्मे के लिए पूरी प्रतिबद्धता से काम कर रहे हैं।

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