हाईपावर कमेटी के फैसले को याचिकाकर्ता नेताम ने सत्य की जीत बताया, अमित जोगी ने कहा नौटंकी
बिलासपुर । पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र को अमान्य करने के हाईपावर कमेटी के फैसले का जिले की राजनीति में और खुद जोगी के राजनैतिक कैरियर पर दूरगामी असर पड़ने वाला है। सवाल यह है कि उनकी सियायत ऐसे माहौल में कहां तक और कब तक खिंच पायेगी। मरवाही सीट से उनका निर्वाचन न केवल निरस्त हो सकता है बल्कि वे आगे किसी भी आदिवासी सीट से चुनाव नहीं लड़ पायेंगे। इसका असर उनके पुत्र अमित जोगी की राजनीति पर भी पड़ेगा क्योंकि तब उनका भी आदिवासी होने का दावा समाप्त हो जायेगा। बिलासपुर कलेक्टर ने समिति की रिपोर्ट या आदेश मिलने के बाद कार्रवाई की बात कही है। अमित जोगी ने इस फैसले को नौटंकी करार देते हुए अदालत में चुनौती देने की बात कही है, वहीं इस मामले में लड़ाई लड़ने वाले संतकुमार नेताम ने फैसले को सत्य की जीत बताते हुए स्वागत किया है।
ज्ञात हो कि बिलासपुर के इंजीनियर संतकुमार नेताम ने प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व मरवाही सुरक्षित सीट के मौजूदा विधायक अजीत जोगी के खिलाफ बीते 10 साल से विभिन्न आयोग व अदालतों में मुकदमे लड़ रहे हैं। उन्होंने जोगी के आदिवासी होने के दावे को चुनौती थी। राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने नेताम की शिकायत पर जोगी के आदिवासी जाति के प्रमाण पत्र को निरस्त कर दिया था। इसे जोगी ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने पाया कि आयोग को जाति का निर्धारण करने का अधिकार नहीं है। उसने आयोग के फैसले को निरस्त कर दिया था। इसके बाद नेताम ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले कुछ फैसलों मे दिये गए गाइडलाइन के मुताबिक हाईकोर्ट को निश्चित समय में इस मामले को सुनने तथा राज्य सरकार को जाति छानबीन के लिए उच्च स्तरीय जांच कमेटी बनाने का निर्देश दिया था।
तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के कार्यकाल में आईएएस रीना बाबा कंगाले की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय छानबीन समिति बनाई गई थी, जिसने 27 जून को 2017 को जोगी के जाति प्रमाण पत्रों को अमान्य कर दिया था। इसके बाद 30 जून को तत्कालीन बिलासपुर कलेक्टर ने उनके जाति प्रमाण पत्र निरस्त कर दिये थे। हाईकोर्ट में इस समिति के गठन को ही अवैधानिक बताते हुए जोगी ने याचिका दायर की थी, जिसके बाद इस कमेटी की रिपोर्ट को निरस्त करते हुए हाईकोर्ट ने विधिपूर्वक नई उच्च-स्तरीय जाति छानबीन समिति बनाने का निर्देश दिया था। 21 फरवरी 2018 को सरकार ने आदिवासी विकास विभाग के सचिव डीडी सिंह की अध्यक्षता में एक अन्य समिति बनाई, जिसने 26 अगस्त को जोगी के आदिवासी होने के प्रमाण पत्रों को अमान्य कर दिया है। पिछली बार जून 2017 में समिति की रिपोर्ट मिलने पर तत्कालीन कलेक्टर ने जोगी की जाति का प्रमाण पत्र निरस्त कर दिया था। इस रिपोर्ट के पालन में जोगी परिवार को आदिवासी वर्ग के समस्त लाभ मिलने बंद हो सकते हैं। इससे मरवाही सीट पर उनका निर्वाचन भी निरस्त हो सकता है। प्रावधान यह भी है कि आरक्षित वर्ग के प्रमाण पत्र के आधार पर मिले सभी लाभ की भी रिकव्हरी की जाये और पाया जाता है कि प्रमाण पत्र फर्जी हैं तो आपराधिक प्रकरण भी दर्ज किया जाये। चूंकि अजीत जोगी के ही जाति प्रमाण पत्र को अमान्य कर दिया गया है इसलिए उनके पुत्र अमित जोगी का भी आदिवासी दर्जा छिन जायेगा। वे भी सुरक्षित सीट मरवाही से विधायक बनते रहे हैं। जिले की मरवाही सीट जोगी परिवार की परम्परागत सीट है, जो आदिवासियों के लिए सुरक्षित है। यदि उन्हें हाईपावर कमेटी के फैसले के खिलाफ किसी सक्षम न्यायालय से स्थगन नहीं मिलता है तो वे आदिवासी होने की पात्रता खो देंगे, इससे उन्हें किसी भी आदिवासी सीट से चुनाव लड़ने का अवसर नहीं मिलेगा। अमित जोगी के निर्वाचन की वैधता को लेकर उनकी सन् 2013 के चुनाव में प्रतिद्वन्द्वी रहीं समीरा पैकरा ने भी जाति व जन्म प्रमाण पत्रों की वैधता पर अलग चुनौती दे रखी है, जो हाईकोर्ट में विचाराधीन है। पेन्ड्रा थाने में पैकरा ने अमित जोगी के खिलाफ इसे लेकर रिपोर्ट भी दर्ज करा चुकी हैं।
विधानसभा चुनाव में जोगी की पार्टी छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस उम्मीद से बहुत कम सीटों पर सिमट गई थी। बसपा के साथ मिलकर उन्होंने कुल सात सीटें हासिल की। बसपा ने लोकसभा चुनाव अकेले लड़ा, जोगी की पार्टी इस चुनाव में मैदान में नहीं उतरी। इस बीच उनके बेहद करीबी साथियों समेत अनेक बड़े नेताओं सहित जमीनी कार्यकर्ताओं ने पार्टी छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया। विधानसभा चुनाव के दौरान जोगी को किंगमेकर के रूप में देखा जा रहा था लेकिन कांग्रेस की एकतरफा जीत से सारी उम्मीदें ढह गईं। हाल ही में पार्टी ने दंतेवाड़ा उप-चुनाव लड़ने की घोषणा की है। नगरीय निकाय तथा पंचायत चुनाव लड़ने का निर्णय भी लिया गया है। ऐसे में हाईपावर कमेटी के फैसले से जोगी व उनके परिवार को होने वाले भारी राजनीतिक नुकसान का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।
यह संयोग है कि दस दिन पहले ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जाति सम्बन्धी प्रत्येक विचाराधीन मामले का निराकरण एक माह के भीतर करने का निर्देश दिया था। इसके बाद सबसे पहले बड़ा फैसला जोगी के मामले में ही आया है।
जोगी के जाति प्रमाण पत्र को चुनौती देने वाले संतकुमार नेताम ने इस फैसले को अंतिम बताते हुए दावा किया कि इसे अब कहीं चुनौती नहीं दी जा सकती। यदि चुनौती दी भी गई तो जोगी को तत्काल कोई राहत नहीं मिलेगी क्योंकि फैसला देने वाली कमेटी ने निर्णय ही सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन पर किया है। उन्होंने कहा कि कई साल लम्बी लड़ाई के बाद आखिर आदिवासी समाज को न्याय मिला है। उन्होंने मरवाही सीट से निर्वाचन निरस्त करने, आदिवासी के रूप में पिता-पुत्र द्वारा लिये गए लाभ की रिकव्हरी करने तथा आपराधिक मुकदमा दर्ज करने की मांग की है।
दूसरी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के प्रदेश अध्यक्ष पूर्व विधायक अमित जोगी ने इसे ‘भूपेश छानबीन समिति’ बताते हुए कहा है कि समिति ने कोरे कागज में अपने दस्तख़त करके मुख्यमंत्री भूपेश बघेलको सौंप दिया था। सुनवाई केवल नौटंकी थी। सभी कानूनी प्रक्रियाओं, प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों और न्यायालय के दृष्टांतों के विपरीत बेतुका फैसला लिया गया, जिसे उच्च-न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जायेगी। हमें पूरा विश्वास है कि हमारे साथ अन्याय नहीं होगा।
छानबीन समिति ने बिलासपुर कलेक्टर को कार्रवाई के लिए निर्देशित किया है लेकिन इन पंक्तियों के लिखे जाने तक रिपोर्ट कलेक्टोरेट आई नहीं है। कलेक्टर डॉ. संजय अलंग ने कार्रवाई क्या की जा रही है, पूछे जाने पर कहा – पहले समिति का आदेश तो आ जाने दीजिये।