बिलासपुर। बरसात के मौसम में साँपों का खतरा बढ़ने के बीच छत्तीसगढ़ इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़ (सिम्स) में पिछले तीन महीनों में सर्पदंश से पीड़ित 38 बच्चों को भर्ती किया गया। इनमें से 16 गैर-विषैले और 22 विषैले सर्पदंश के मामले थे।
विषैले सर्पदंश वाले 10 बच्चों में साँस की मांसपेशियों में लकवा (Respiratory Paralysis) देखा गया, जिन्हें आईसीयू में वेंटिलेटर सपोर्ट पर इलाज दिया गया। समय पर एंटी-स्नेक वेनम, अन्य दवाइयों और डॉक्टरों की टीम की मेहनत से सभी बच्चे पूरी तरह स्वस्थ होकर डिस्चार्ज हो गए।
गैर-विषैले सर्पदंश के मामले भी सुरक्षित
गैर-विषैले सर्पदंश के पीड़ित बच्चों को लक्षणों के आधार पर दवा देकर सुरक्षित डिस्चार्ज किया गया।
डॉक्टरों की अपील
सिम्स डॉक्टरों ने लोगों से अपील की है कि सर्पदंश की स्थिति में झाड़-फूँक या देसी इलाज पर समय न गँवाएँ। मरीज को तुरंत नज़दीकी अस्पताल पहुँचाएँ, क्योंकि जितनी जल्दी इलाज शुरू होगा उतनी जल्दी जान बचाना संभव है।
बचाव के उपाय
- बच्चों को ज़मीन पर न सुलाएँ, ऊँचे व सुरक्षित बिस्तर का उपयोग करें।
- घर व आसपास की जगहें साफ-सुथरी रखें ताकि साँप छिप न सकें।
- रात में बाहर निकलते समय टॉर्च या रोशनी का उपयोग करें।
- खेतों और घास-फूस वाली जगहों में जूते पहनकर ही जाएँ।
दवाओं की उपलब्धता रही अहम
डीन डॉ. रमणेश मूर्ति और चिकित्सा अधीक्षक डॉ. लखन सिंह ने समय पर एंटी-स्नेक वेनम और अन्य दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित की। बाल रोग विभागाध्यक्ष डॉ. राकेश नहरेल और यूनिट हेड डॉ. समीर जैन के नेतृत्व में डॉक्टरों की टीम—डॉ. वर्षा तिवारी, डॉ. पूनम अग्रवाल, डॉ. अभिषेक कलवानी, डॉ. सलीम खलखो और डॉ. अंकिता चंद्राकर—ने मिलकर बच्चों की जान बचाने में अहम योगदान दिया।
“एंटी स्नेक वेनम ही सर्पदंश का कारगर इलाज है। झाड़-फूँक या अन्य उपायों पर ध्यान न दें, तुरंत नज़दीकी अस्पताल पहुँचें।”
— डॉ. रमणेश मूर्ति, अधिष्ठाता सिम्स