प्रलेस के 90 वर्ष पूरे होने के अवसर पर गोष्ठी

बिलासपुर। प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना के 90 वर्ष पूरे होने के अवसर पर छत्तीसगढ़ प्रलेस, बिलासपुर इकाई द्वारा 10 अप्रैल को एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस गोष्ठी का विषय था—“प्रगतिशील साहित्य की यात्रा: उपलब्धियाँ और चुनौतियाँ”।

गोष्ठी के मुख्य वक्ता प्रसिद्ध चिंतक डॉ. राजेश्वर सक्सेना ने कहा कि साहित्य का मूल आधार संवेदना होता है। यह सौंदर्यशास्त्र का विषय होते हुए भी समाज से गहराई से जुड़ा होता है। उन्होंने कहा कि महान कथाकार प्रेमचंद ने साहित्य में नायकत्व की पारंपरिक अवधारणा को बदलकर सामाजिक यथार्थ को केंद्र में लाया, यही प्रगतिशील लेखन की बुनियाद है।

डॉ. सक्सेना ने प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना के समय की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों का विश्लेषण करते हुए बताया कि प्रेमचंद ने साहित्य में भावना, कल्पना और वैचारिक संवेदना को एक साथ जोड़ा। उन्होंने ‘ईदगाह’ कहानी का उदाहरण देते हुए कहा कि संवेदनशीलता के साथ भौतिक यथार्थ को अभिव्यक्त करना प्रगतिशील साहित्य की विशेषता रही है।

समकालीन वैश्विक स्थिति पर चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि वर्तमान में यूरोप सामाजिक संकट से गुजर रहा है। आज के दौर में साहित्य में सामाजिक संबंधों, इतिहास और जीवन मूल्यों का ह्रास हो रहा है। उन्होंने ज़ोर दिया कि साहित्य को जीवन की गति और सौंदर्यशास्त्र के बीच संतुलन बनाकर रचना चाहिए, ताकि वह समाज की सच्ची तस्वीर प्रस्तुत कर सके।

गोष्ठी की शुरुआत में रफीक़ खान ने विषय प्रस्तावना प्रस्तुत की और प्रेमचंद के ऐतिहासिक भाषण की प्रमुख बातों को साझा किया। नथमल शर्मा ने आज के साहित्य और लेखन से जुड़ी चुनौतियों को रेखांकित किया और कहा कि साहित्य के माध्यम से जीवन मूल्यों की रक्षा की जानी चाहिए।

नंदकुमार कश्यप ने मानव सभ्यता के विकास क्रम का उल्लेख करते हुए समकालीन साहित्य की भूमिका पर विचार रखे।

गोष्ठी के अंत में प्रश्नोत्तर सत्र आयोजित हुआ, जिसमें हबीब खान, लखन सिंह, मधुकर गोरख सहित कई श्रोताओं ने प्रश्न पूछे, जिनका उत्तर डॉ. सक्सेना ने विस्तार से दिया।

इस अवसर पर डॉ. सत्यभामा अवस्थी, जितेन्द्र पांडे, धर्मेन्द्र निर्मलकर, लखन सिंह सहित अनेक गणमान्य साहित्यकार उपस्थित रहे।

आभार प्रदर्शन करते हुए डॉ. अशोक शिरोड़े ने जानकारी दी कि शीघ्र ही डॉ. सक्सेना के साथ एक और विचार गोष्ठी आयोजित की जाएगी, जिसमें अन्य समकालीन मुद्दों पर चर्चा की जाएगी।

गोष्ठी के अंत में प्रलेस कोरबा के अध्यक्ष सुरेश चंद्र रोहरा के आकस्मिक निधन पर दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि दी गई।

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