बिलासपुर। छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग ने सोमवार को जल संसाधन विभाग के प्रार्थना सभा कक्ष में जनसुनवाई की। आयोग की अध्यक्ष डॉ. किरणमयी नायक, सचिव किरण कुजुर और सदस्य सरला कोसरिया की मौजूदगी में 31 मामलों पर सुनवाई हुई। ये प्रदेश स्तरीय 325वीं और बिलासपुर जिले की 18वीं जनसुनवाई थी।
महिला पर अभद्र टिप्पणी, एडीएम को लिखा कड़ा पत्र
एक महिला ने शिकायत की थी कि एडीएम के ड्राइवर ने उसके साथ कार्यस्थल पर अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया। महिला ने विभागीय समिति में बयान भी दिया, जिसे गवाहों ने सही ठहराया। लेकिन मामले का हल नहीं निकलने पर आयोग ने स्थानीय समिति को जांच कर 1 महीने में रिपोर्ट देने के निर्देश दिए हैं। साथ ही एडीएम बिलासपुर को पत्र भेजकर ड्राइवर पर कार्रवाई करने को कहा गया है। अगली सुनवाई अगस्त में रायपुर में होगी।
फर्जी पुलिस बनकर की शादी, आयोग की निगरानी में सुलहनामा
एक मामले में महिला ने बताया कि युवक ने खुद को पुलिसवाला बताकर उससे शादी की और बाद में धोखा दिया। चार महीने से वह मायके में रह रही है। महिला के परिवार ने शादी में 10 लाख रुपए के सामान देने की बात कही। दोनों पक्षों के बीच सुलहनामा हुआ और लिखित समझौता प्रस्तुत किया गया, जिसे आयोग ने स्वीकार कर प्रकरण नस्तीबद्ध किया।
दो शादियां करने वाले शिक्षक पर कार्रवाई की सिफारिश
एक महिला ने बताया कि उसने एक शिक्षक से शादी की, जबकि वह पहले से शादीशुदा है और दो बच्चों का पिता है। आयोग ने मुंगेली के जिला शिक्षा अधिकारी को पत्र भेजकर उक्त शिक्षक को तत्काल सस्पेंड करने और उसकी सेवा पुस्तिका की कॉपी 15 दिन में आयोग में भेजने को कहा है।
वेतन नहीं मिलने से बेटी की फीस न भर पाने की शिकायत
एक महिला ने बताया कि उसे 10 महीने से वेतन नहीं मिला है जिससे वह अपनी बेटी की बीएचएमएस की पढ़ाई की फीस नहीं भर पा रही। आयोग ने इस पर संबंधित अधिकारी से बात कर जल्द वेतन भुगतान के निर्देश दिए और रायपुर मुख्य डाकघर को पत्र भेजकर कार्रवाई करने को कहा।
पटवारी ने पत्नी का नाम सेवा पुस्तिका में दर्ज नहीं किया
एक अन्य मामले में पामगढ़ के एक पटवारी पर आरोप लगा कि उसने पत्नी का नाम सर्विस बुक में नहीं जोड़ा। आयोग ने उसे 30 जून तक सेवा पुस्तिका की प्रति और स्पष्टीकरण के साथ पेश होने को कहा है।
सामाजिक बहिष्कार और भूमि विवाद के मामले
कुछ मामलों में सामाजिक बहिष्कार, मकान पर कब्जा और भूमि विवाद की शिकायतें आईं। आयोग ने जिन मामलों में तहसील कार्यालय से पहले ही समाधान हो चुका था, उन्हें बंद कर दिया। जहां आपसी सहमति बन गई थी, वहां समझौते के आधार पर प्रकरण खत्म किए गए।