बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने प्रशासनिक कार्रवाई से जुड़ा अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने रिकॉर्डर्स एंड मेडिकेयर सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड को ब्लैकलिस्ट करने का आदेश रद्द कर दिया। अदालत ने माना कि सिर्फ एक एफआईआर दर्ज होने के आधार पर किसी कंपनी पर इतनी सख्त कार्रवाई नहीं की जा सकती।

चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बिभू दत्त गुरु की खंडपीठ ने कहा कि ब्लैकलिस्टिंग का असर गंभीर होता है और यह “सिविल डेथ” जैसा है। इसलिए इसे केवल उन्हीं मामलों में लागू करना चाहिए, जहां आरोप पुख्ता और गंभीर हों।

मामले में छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन लिमिटेड (सीजीएमएससी) ने 2025 में मेडिकेयर कंपनी को तीन साल के लिए ब्लैकलिस्ट कर दिया था। इसका आधार एसीबी-ईओडब्ल्यू की दर्ज एफआईआर थी, जिसमें भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और आईपीसी के तहत आरोप लगाए गए थे।

कंपनी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता किशोर भादुड़ी ने दलील दी कि केवल एफआईआर दर्ज होने का मतलब दोष सिद्ध होना नहीं है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले का हवाला देते हुए कहा कि बिना ठोस सबूत ब्लैकलिस्ट करना मनमाना कदम है।

सीजीएमएससी की ओर से तर्क दिया गया कि कंपनी ने मिलीभगत से बोली लगाई, जिससे दूसरी कंपनी को फायदा मिला। लेकिन कोर्ट ने कहा कि बोलियों में 20-25 प्रतिशत का फर्क मिलीभगत का निर्णायक सबूत नहीं है। अदालत ने माना कि इस आधार पर लगाया गया प्रतिबंध समय से पहले और अनुपातहीन है।

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