रायपुर। कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) [सीपीआई(एम)] की वरिष्ठ नेता बृंदा करात ने आज छत्तीसगढ़ के रायपुर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया। यह प्रेस कॉन्फ्रेंस दुर्ग रेलवे स्टेशन पर 25 जुलाई को दो केरल ननों, सिस्टर प्रीति मैरी और सिस्टर वंदना फ्रांसिस, की मानव तस्करी और जबरन धर्मांतरण के आरोप में हुई गिरफ्तारी के मामले को लेकर थी। करात ने इस कार्रवाई को ‘ईसाई समुदाय पर सुनियोजित हमला’ करार दिया और इसे ‘असंवैधानिक और गैरकानूनी’ बताया। उन्होंने इस मामले में तत्काल जाँच और ननों की रिहाई की माँग की।
आरोप झूठे, मारपीट की गई
रायपुर में पत्रकारों से बात करते हुए बृंदा करात ने कहा, “दो ननों, जो वर्षों से गरीबों की सेवा कर रही थीं, को झूठे और मनगढ़ंत आरोपों के आधार पर जेल में डाल दिया गया। एक आदिवासी युवक, जिसका कोई दोष नहीं था, उसे भी पीटा गया और जेल में बंद कर दिया गया। यह कैसा कानून है, जहाँ बजरंग दल और आरएसएस से जुड़े लोग पुलिस के सामने लड़कियों और एक युवक को मारते हैं?” उन्होंने आरोप लगाया कि यह गिरफ्तारी बीजेपी और छत्तीसगढ़ सरकार के ‘संकीर्ण हिंदुत्ववादी एजेंडे’ का हिस्सा है।
करात ने ननों की जेल में स्थिति पर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि सिस्टर प्रीति और सिस्टर वंदना बीमार हैं, एक को बुखार और दूसरी को गठिया की शिकायत है, फिर भी उन्हें जेल में फर्श पर सोने को मजबूर किया जा रहा है। “यह मानवता के मूल्यों का उल्लंघन है। ननों ने हमसे पूछा, ‘क्या हम भारत के नागरिक नहीं हैं?’ यह देश में अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ते हमलों का हिस्सा है,” उन्होंने कहा। करात ने FIR को रद्द करने और ननों की तत्काल रिहाई की माँग की, साथ ही इसे ‘गुंडों का राज’ करार दिया।
लड़कियां ईसाई धर्म को मानने वाली
उन्होंने यह भी कहा कि तीनों आदिवासी लड़कियाँ, जिन्हें ननों के साथ पकड़ा गया, पहले से ही ईसाई थीं, और इसलिए धर्मांतरण का कोई सवाल ही नहीं उठता। उन्होंने बजरंग दल पर आरोप लगाया कि उसने पुलिस के सामने लड़कियों को डराकर उनके बयान बदलवाए। “भारतीय नागरिकों को देश में कहीं भी नौकरी के लिए जाने का अधिकार है। ये आरोप पूरी तरह बेबुनियाद हैं,” करात ने जोर देकर कहा।
ननों से दुर्ग जेल में की मुलाकात
प्रेस कॉन्फ्रेंस से पहले बृंदा करात ने आज सुबह दुर्ग सेंट्रल जेल का दौरा किया, जहाँ उन्होंने ननों से मुलाकात की। उनके साथ सीपीआई की नेता एनी राजा, सीपीआई(एम) के सांसद के. राधाकृष्णन, ए.ए. रहीम, और केरल कांग्रेस (एम) के सांसद जोस के. मनी भी थे। यह प्रतिनिधिमंडल जेल में ननों की स्थिति का जायजा लेने और उन्हें समर्थन देने के लिए गया था। करात ने जेल प्रशासन पर ननों के साथ अमानवीय व्यवहार का आरोप लगाया और उनकी स्वास्थ्य स्थिति को लेकर चिंता जताई।
हालांकि, एक दिन पहले, 29 जुलाई को, करात और उनके प्रतिनिधिमंडल को जेल प्रशासन ने मुलाकात की अनुमति देने से इनकार कर दिया था। सीपीआई(एम) के महासचिव एम.ए. बेबी ने इसकी निंदा करते हुए इसे ‘सच्चाई को दबाने की कोशिश’ बताया था। आज सुबह, उनके विरोध और दबाव के बाद, जेल प्रशासन ने मुलाकात की अनुमति दी और बीमार ननों को जिला अस्पताल में स्थानांतरित करने का आश्वासन दिया गया।
केरल में गिरफ्तारी के खिलाफ प्रदर्शन
इस मामले ने देशभर में तीव्र प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न की हैं। केरल में सत्तारूढ़ एलडीएफ और विपक्षी यूडीएफ ने तिरुवनंतपुरम और अन्य शहरों में अलग-अलग विरोध प्रदर्शन किए। कांग्रेस सांसद के.सी. वेणुगोपाल ने संसद में इस मुद्दे को उठाया और इसे ‘संविधान का उल्लंघन’ बताया। केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर हस्तक्षेप की माँग की।
मालूम हो कि, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने इस कार्रवाई का बचाव करते हुए कहा है कि यह ‘मानव तस्करी और धर्मांतरण’ का मामला है। हालांकि, केरल बीजेपी अध्यक्ष राजीव चंद्रशेखर ने इस कार्रवाई को गलत ठहराया और कहा कि ननों के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं हैं।
सत्र न्यायालय ने खारिज की जमानत अर्जी
मालूम हो कि दुर्ग के सत्र न्यायालय ने आज ननों की जमानत याचिका खारिज कर दी और मामले को राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) एक्ट के तहत स्थापित बिलासपुर की कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया। कोर्ट ने कहा कि उसके पास इस मामले में जमानत याचिका सुनने का अधिकार नहीं है। इस फैसले से ननों को तत्काल रिहाई की उम्मीदों को झटका लगा है।