बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महिला अधिकारी को गोद लिए नवजात की परवरिश के लिए 180 दिन की छुट्टी नहीं दिए जाने पर सख्त टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि मातृत्व अवकाश केवल सुविधा नहीं, बल्कि एक अधिकार है, जो किसी महिला को अपने परिवार और बच्चे की देखभाल करने के लिए आवश्यक है। यह फैसला आईआईएम रायपुर की सहायक प्रशासनिक अधिकारी द्वारा दायर याचिका पर सुनाया गया।

मातृत्व जीवन की सबसे स्वाभाविक घटना

न्यायमूर्ति बीडी गुरु की एकल पीठ ने कहा कि मां बनना किसी भी महिला के जीवन की सबसे स्वाभाविक घटना है। गोद लेने की स्थिति में भी शिशु की देखभाल उतनी ही आवश्यक है, जितनी जन्म देने के बाद। कार्यस्थल पर महिलाएं पहले ही कई चुनौतियों का सामना करती हैं, ऐसे में उनके लिए नियोक्ता को सहानुभूतिपूर्वक और संवेदनशील रवैया अपनाना चाहिए।

2 दिन की नवजात को लिया था गोद

आईआईएम रायपुर में वर्ष 2013 से कार्यरत महिला अधिकारी ने नवंबर 2023 में एक दो दिन की नवजात बच्ची को गोद लिया था और इसके बाद 180 दिनों की चाइल्ड एडॉप्शन लीव के लिए आवेदन किया। लेकिन संस्थान ने यह कहकर आवेदन अस्वीकार कर दिया कि उसकी मानव संसाधन नीति में ऐसी कोई स्पष्ट व्यवस्था नहीं है और अधिकतम 60 दिन की कन्वर्टेड लीव का प्रावधान है।

हाईकोर्ट ने खारिज किया संस्थान का तर्क

याचिका पर सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने कहा कि मातृत्व अवकाश केवल जैविक मां के लिए नहीं, बल्कि गोद लेने वाली मां के लिए भी समान रूप से जरूरी है। कोर्ट ने आईआईएम रायपुर के निर्णय को रद्द करते हुए महिला अधिकारी को नियम 1972 के तहत 180 दिनों की अवकाश देने के निर्देश दिए हैं।

महिला अधिकारियों के लिए नजीर बनेगा यह फैसला

यह फैसला देशभर की महिला कर्मियों के लिए एक मिसाल है, खासकर उन महिलाओं के लिए जो गोद लेकर मातृत्व का अनुभव करती हैं। यह अधिकार उन्हें भी वही सम्मान और सहूलियत दिलाता है, जो जन्म देने वाली माताओं को मिलती है।

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