जमानत पर छूटकर फिर से किया अपराध, राहत देने से इनकार

बिलासपुरछत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने दो अलग-अलग नाबालिगों से दुष्कर्म के दोषी आरोपी को बड़ी राहत देने से इनकार कर दिया है। न्यायमूर्ति अरविंद कुमार वर्मा की एकलपीठ ने आरोपी की वह याचिका खारिज कर दी, जिसमें उसने आग्रह किया था कि दोनों मामलों में सुनाई गई 10-10 साल की सजा एक साथ चलाई जाए।

अदालत ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि आरोपी संजय नागवंशी ने जमानत पर रिहा होने के बाद दोबारा उसी प्रकार का गंभीर अपराध किया, इसलिए वह किसी भी प्रकार की नरमी का हकदार नहीं है।

पहला मामला: शादी का झांसा देकर दुष्कर्म

अंबिकापुर के सीतापुर क्षेत्र का निवासी संजय नागवंशी 4 अप्रैल 2014 को एक नाबालिग लड़की को शादी का झांसा देकर कुनकुरी ले गया था। वहां उसने करीब दो से तीन महीने तक उसका यौन शोषण किया। 20 जून 2014 को पीड़िता ने यह बात अपने परिजनों को बताई, जिसके बाद पुलिस में रिपोर्ट दर्ज की गई और मामला न्यायालय में पहुंचा। विशेष पॉक्सो अदालत, सरगुजा ने 22 दिसंबर 2015 को आरोपी को 10 साल के कठोर कारावास और 1,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई थी। अपील लंबित रहने के दौरान उसे इस मामले में जमानत मिल गई।

दूसरा मामला: जमानत के बाद फिर दोहराया अपराध

जमानत पर छूटने के बाद आरोपी ने 10 मई 2015 को एक और नाबालिग लड़की से दुष्कर्म किया। इस प्रकरण में विशेष सत्र न्यायाधीश (एफटीसी) सरगुजा ने 11 मार्च 2019 को निर्णय सुनाया और आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 341 के तहत 6 माह की सजा और पॉक्सो एक्ट के तहत फिर से 10 साल के कठोर कारावास की सजा दी। इस सजा के खिलाफ दायर अपील 9 फरवरी 2022 को खारिज कर दी गई, जिसमें हाईकोर्ट ने दोषसिद्धि और सजा को उचित बताया।

हाईकोर्ट की टिप्पणी: “आदतन अपराधी को नहीं मिल सकती राहत”

अब आरोपी ने हाईकोर्ट में क्रिमिनल मिसलेनियस याचिका दाखिल कर दोनों सजाओं को साथ-साथ चलाने की मांग की थी। कोर्ट ने इसे खारिज करते हुए कहा कि आरोपी ने जमानत पर छूटने के बावजूद एक और गंभीर अपराध किया, जो यह दर्शाता है कि वह आदतन अपराधी है। इसलिए उसके साथ कोई सहानुभूति नहीं बरती जा सकती।

कोर्ट ने साफ कहा कि यह मामला उन मामलों में नहीं आता, जिनमें सजाएं एकसाथ चलाने की अनुमति दी जा सके। आरोपी को दोनों मामलों में मिली सजा अलग-अलग पूरी करनी होगी।

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