बिलासपुर। छत्तीसगढ़ में प्राचार्य पदोन्नति को लेकर राज्य शासन की कार्रवाई पर हाईकोर्ट ने कड़ी आपत्ति जताई है। बुधवार को हुई सुनवाई में डिवीजन बेंच ने अगली सुनवाई तक इस प्रक्रिया पर पूरी तरह रोक लगा दी है। अब यह मामला 9 जून को फिर से कोर्ट में सुना जाएगा।

जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस सचिन सिंह राजपूत की बेंच ने सुनवाई के दौरान राज्य शासन और स्कूल शिक्षा विभाग को फटकार लगाते हुए कहा कि कोर्ट के स्पष्ट आदेश के बावजूद कई शिक्षकों को प्राचार्य पद पर कार्यभार ग्रहण करा दिया गया। कोर्ट ने इसे आदेश की अवमानना माना है।

शासन से मांगी गई विस्तृत जानकारी

हाईकोर्ट ने राज्य शासन से पूछा है—

  • कितने शिक्षकों को ज्वाइनिंग दी गई?
  • किस अधिकारी ने कार्यभार ग्रहण कराया?
  • प्राचार्य पदोन्नति की प्रक्रिया में अब तक क्या-क्या हुआ?

इन सभी सवालों के जवाब रिपोर्ट के रूप में कोर्ट में पेश करने के निर्देश दिए गए हैं।

कोर्ट ने जारी की सख्त हिदायत

हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगली सुनवाई तक न तो काउंसलिंग होगी और न ही किसी शिक्षक को प्राचार्य पद की ज्वाइनिंग दी जाएगी। अब तक कराई गई सभी ज्वाइनिंग को भी अमान्य करार दिया गया है।

कोर्ट के आदेश के बावजूद जारी की गई थी प्रमोशन लिस्ट

इस मामले में पहले भी सुनवाई हो चुकी है। 28 मार्च 2025 को कोर्ट में सरकार की ओर से आश्वासन दिया गया था कि अगली सुनवाई तक कोई आदेश जारी नहीं किया जाएगा। इसके बावजूद 30 अप्रैल को प्रमोशन लिस्ट जारी कर दी गई और 1 मई को कोर्ट ने इस पर तत्काल रोक लगाई।

वकीलों ने अदालत में उठाया मुद्दा

7 मई को हुई सुनवाई में याचिकाकर्ता पक्ष के वकीलों ने बताया कि नियमों को ताक पर रखकर कई व्याख्याताओं को प्राचार्य पद की ज्वाइनिंग दे दी गई है। इस पर कोर्ट ने सख्ती दिखाते हुए शिक्षा विभाग को आड़े हाथों लिया।

2019 और 2025 की याचिकाएं बनीं सुनवाई का आधार

  1. हाईकोर्ट में प्राचार्य प्रमोशन को लेकर दो प्रमुख याचिकाएं लंबित हैं—एक 2019 के वरिष्ठता विवाद से जुड़ी है, वहीं दूसरी याचिका 2025 के बीएड और डीएलएड विषयों से संबंधित है। कोर्ट ने इन दोनों पहलुओं को सुनवाई का हिस्सा बनाते हुए प्रक्रिया पर फिलहाल विराम लगा दिया है।

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