बिलासपुर। जन्म के दो दशक बाद एक युवती ने प्रतिवादी को अपना पिता बताते हुए भरण-पोषण की मांग की है और न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। युवती का कहना है कि उसकी मां को शादी के कुछ साल बाद ससुराल से निकाल दिया गया था और अब उसके पास आय का कोई साधन नहीं है। वहीं, पिता ने साफ कहा कि युवती उनकी जैविक संतान नहीं है। परिवार न्यायालय के फैसले के खिलाफ प्रतिवादी ने हाईकोर्ट से राहत मांगी है, मगर फिलहाल उसे भरण-पोषण का आंशिक भुगतान करना होगा।

हाईकोर्ट ने अंतरिम राहत के तहत दो हजार रुपये मासिक देने का दिया आदेश

मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति रजनी दुबे और न्यायमूर्ति सचिन सिंह राजपूत की युगलपीठ ने की। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि छात्रा पिता की संतान है या नहीं, इसका निर्णय बाद में होगा। फिलहाल, युवती को दो हजार रुपये प्रतिमाह अंतरिम भरण-पोषण देने का आदेश दिया गया है। साथ ही निर्देश दिए गए हैं कि यह मामला छह माह के भीतर निपटाया जाए। यदि निर्धारित समय में निर्णय नहीं होता और देरी के लिए अपीलकर्ता जिम्मेदार नहीं पाई जाती, तो अंतरिम भरण-पोषण की राशि पर पुनर्विचार किया जाएगा।

मां को विवाह के तीन साल बाद घर से निकाला, बेटी के खर्च उठाना मुश्किल

कबीरधाम की रहने वाली 20 वर्षीय बीकॉम छात्रा ने अदालत में बताया कि उसकी मां की शादी 18 अप्रैल 1999 को हुई थी और वह खुद 16 नवंबर 2002 को जन्मी। शादी के तीन साल बाद पिता ने उसकी मां को घर से निकाल दिया, तब से वे अपने मायके में रह रही हैं। मां की कोई आय नहीं है और बेटी की पढ़ाई, भोजन, कपड़े और स्टेशनरी के खर्च उठा पाना कठिन हो गया है। इसी कारण, भरण-पोषण की मांग की गई।

पारिवारिक न्यायालय के आदेश को चुनौती, पिता ने पितृत्व से किया इनकार

फरवरी 2025 में पारिवारिक न्यायालय ने छात्रा की याचिका स्वीकार करते हुए अंतरिम रूप से हर महीने दो हजार रुपये देने का आदेश दिया था। लेकिन पिता ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी। उन्होंने कहा कि पारिवारिक न्यायालय का आदेश अवैध, तथ्यों के प्रतिकूल और त्रुटिपूर्ण है।

अपील में पिता ने तर्क दिया कि युवती उनकी जैविक संतान नहीं है, क्योंकि उनकी पत्नी के किसी अन्य पुरुष से अवैध संबंध थे। इसलिए वे भरण-पोषण देने के लिए बाध्य नहीं हैं। साथ ही यह भी कहा गया कि बेटी ने 22 साल बाद यह मांग उठाई, जो अनुचित है।

कोर्ट ने दस्तावेजों और मौखिक साक्ष्य पर की टिप्पणी

कोर्ट ने दस्तावेज और मौखिक गवाही का अवलोकन करते हुए पाया कि विवाह 18 अप्रैल 1999 को हुआ था और पत्नी 22 मार्च 2002 को ससुराल छोड़कर चली गई थी। छात्रा का जन्म 16 नवंबर 2002 को हुआ, यानी पत्नी के घर छोड़ने के नौ माह के भीतर।

कोर्ट ने कहा कि जैविक संबंध का निर्णय आगे होगा, लेकिन अंतरिम भरण-पोषण के लिए प्राथमिक रूप से संबंध और आय की स्थिति को देखा जाता है, इसलिए फिलहाल राहत दी जा रही है।

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