बिलासपुर। सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार को फटकार लगाते हुए दो महीने में भूमि अधिग्रहण प्राधिकरण बनाने का आदेश दिया है। अगर तय समय में यह काम नहीं हुआ तो कानूनी कार्रवाई की चेतावनी भी दी गई है।

सालों से अटकी थी किसानों की सुनवाई

सरगुजा-बिलाईगढ़ जिले के बाबूलाल ने वकील अभिनव श्रीवास्तव के जरिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी। उनका कहना था कि राज्य बनने के इतने साल बाद भी यहां भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन प्राधिकरण नहीं बना है। इस कारण मुआवजे और ब्याज से जुड़ी सैकड़ों अर्जियां सालों से लटकी हुई हैं। इससे किसानों और ज़मीन मालिकों को लंबे समय से परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।

हाईकोर्ट ने की थी अनदेखी

बाबूलाल पहले यह मामला हाईकोर्ट भी ले गए थे, लेकिन कोर्ट ने इसे जनहित का मामला मानने से इनकार कर दिया था। बाद में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की, जिस पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया।

राज्य सरकार की दलील पर कोर्ट ने जताई नाराज़गी

सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने 28 अप्रैल 2025 के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि प्राधिकरण बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने रिकॉर्ड देखकर साफ कहा कि यह प्राधिकरण कई सालों से निष्क्रिय है और अब इसे और टालना उचित नहीं है।

2 महीने में काम पूरा करने का आदेश

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की खंडपीठ ने मुख्य सचिव को आदेश दिया कि दो महीने के भीतर यह प्राधिकरण बन जाए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो अदालत सख्त कानूनी कार्रवाई करेगी।

अब भी सुरक्षित हैं किसानों के अधिकार

वकील अभिनव श्रीवास्तव ने बताया कि 2018 से लागू नए भूमि अधिग्रहण कानून के तहत मुआवजा या किसी अन्य विवाद पर आवेदन किया जा सकता है। यह कानून कहता है कि ज़मीन अधिग्रहण अधिकारी को एक साल के भीतर फैसला देना होगा। अगर नहीं देता, तो व्यक्ति प्राधिकरण के पास जा सकता है। लेकिन प्राधिकरण न होने से लोगों को राहत नहीं मिल रही थी।

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इस आदेश के बावजूद किसी भी प्रभावित व्यक्ति के मुआवजे या ब्याज का अधिकार खत्म नहीं होगा। अगली सुनवाई 15 सितंबर 2025 को होगी, जिसमें देखा जाएगा कि सरकार ने आदेश का पालन किया या नहीं।

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