कहा- मेडिकल जांच के बिना साबित नहीं होता नशा
बिलासपुर। पुलिस विभाग से एक दिन की अनुपस्थिति और नशे की हालत में थाने आने के आरोप में बर्खास्त किए गए आरक्षक शंकर लाल को हाईकोर्ट ने सेवा में बहाल करने का निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति संजय के. अग्रवाल की एकलपीठ ने कहा कि मेडिकल या ब्लड टेस्ट के बिना नशे का आरोप साबित नहीं किया जा सकता, केवल गंध या पंचनामा के आधार पर इतनी बड़ी सजा देना अनुचित है।
बिना मेडिकल जांच के नशे का आरोप
डोंगरगढ़ में पदस्थ आरक्षक शंकर लाल 25 फरवरी 2007 को ड्यूटी से अनुपस्थित रहे। उसी दिन उनके नशे की हालत में थाने पहुंचने और अधिकारियों से दुर्व्यवहार का आरोप लगा। इस पर 18 अप्रैल 2007 को चार्जशीट दी गई और 3 जून 2007 को जांच अधिकारी ने उन्हें दोषी पाया। 23 जून 2007 को पुलिस अधीक्षक ने सेवा से बर्खास्त कर दिया।
इसके खिलाफ आरक्षक ने महानिरीक्षक को अपील की, जिसे 2 नवंबर 2015 को खारिज कर दिया गया। इसके बाद दया याचिका भी दायर की गई, जिसे 27 फरवरी 2016 को अस्वीकार कर दिया गया। तब जाकर उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की।
एक दिन की गैरहाजिरी पर बर्खास्तगी को बताया कठोर
याचिकाकर्ता ने कोर्ट में कहा कि सिर्फ एक दिन की गैरहाजिरी पर बर्खास्त करना अनुचित है। साथ ही, नशे के आरोप की पुष्टि के लिए कोई मेडिकल या ब्लड टेस्ट नहीं किया गया। केवल गंध के आधार पर लगाए गए आरोप को गलत बताया गया और सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला भी दिया।
सरकार ने जवाब में कहा कि विभागीय जांच में आरक्षक की गलती साबित हुई है, इसलिए बर्खास्तगी उचित है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देकर दी राहत
हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के मुन्नालाल बनाम केंद्र सरकार के फैसले का हवाला देते हुए याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार किया। कोर्ट ने माना कि गैरहाजिरी का आरोप सही है, लेकिन नशे का आरोप केवल पंचनामा और गंध पर आधारित है, जो पर्याप्त नहीं है।
इस आधार पर कोर्ट ने बर्खास्तगी की सजा को घटाकर एक वार्षिक वेतन वृद्धि रोके जाने में बदल दिया और आरक्षक को सेवा में बहाल करते हुए 50 प्रतिशत बकाया वेतन देने का आदेश दिया है।