बीएसएनएल से रिटायर्ड  कर्मचारी और उनकी पत्नी की सड़क हादसे में मौत, पहले मिला थे सिर्फ 75 हजार रुपये

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने मोटर दुर्घटना के एक महत्वपूर्ण मामले में टिप्पणी करते हुए कहा है कि “माता-पिता और बच्चे जीवन भर एक-दूसरे पर आश्रित रहते हैं।” इस टिप्पणी के साथ ही हाईकोर्ट ने ट्रिब्यूनल के पुराने फैसले को पलटते हुए रायपुर के दो बेटों को उनके माता-पिता की मौत पर 14 लाख 5 हजार 469 रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है।

यह मामला रायपुर के रहने वाले सेवानिवृत्त बीएसएनएल कर्मचारी हरकचंद यादव और उनकी पत्नी मनभावती यादव की सड़क दुर्घटना में मौत से जुड़ा है। हादसा 5 सितंबर को तब हुआ जब हरकचंद अपनी पत्नी को बाइक पर बैठाकर दुर्ग ले जा रहे थे। पावर हाउस बस स्टैंड के पास एक ट्रक ने उनकी बाइक को टक्कर मार दी, जिससे दोनों की मौके पर ही मौत हो गई।

ट्रिब्यूनल ने सिर्फ 75 हजार दिए थे
हादसे के बाद मृतक दंपती के बेटों मनोज कुमार और तरुण कुमार ने ट्रिब्यूनल में 26.50 लाख रुपये मुआवजे की मांग की थी। लेकिन ट्रिब्यूनल ने यह कहते हुए केवल 75 हजार रुपये की राशि मंजूर की कि दोनों बेटे वयस्क, विवाहित और आर्थिक रूप से अपने पिता पर निर्भर नहीं थे।

हाईकोर्ट ने माना – आश्रय सिर्फ आर्थिक नहीं होता
बेटों ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी, जिस पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने साफ कहा कि माता-पिता और बच्चों के बीच संबंध केवल आर्थिक नहीं होते, बल्कि भावनात्मक, सामाजिक और नैतिक स्तर पर भी जीवनभर का आश्रय बना रहता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसी परिस्थितियों में महज विवाहित या आत्मनिर्भर होना इस अधिकार को खत्म नहीं कर सकता।

इस आधार पर हाईकोर्ट ने ट्रिब्यूनल के फैसले को संशोधित करते हुए दोनों बेटों को 14 लाख 5 हजार 469 रुपये मुआवजा देने का निर्देश दिया।

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