बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने राज्य में इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य परीक्षकों की नियुक्ति में हो रही देरी पर गंभीर चिंता जताई है। कोर्ट ने कहा कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के बावजूद तकनीक के दुरुपयोग के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। ऐसे में समय पर परीक्षकों की नियुक्ति अत्यंत आवश्यक है, ताकि साइबर अपराधों की जांच और न्यायिक प्रक्रिया प्रभावी ढंग से चल सके।

एक माह का समय मांगा केंद्र सरकार ने 

मुख्य न्यायाधीश रमेश कुमार सिन्हा और न्यायमूर्ति विभु दत्त गुरु की खंडपीठ ने सोमवार को जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। याचिकाकर्ता ने राज्य में आइटी एक्ट की धारा 79ए के तहत इलेक्ट्रॉनिक एविडेंस परीक्षकों की त्वरित नियुक्ति की मांग की थी।

केंद्र सरकार की ओर से डिप्टी सॉलिसिटर जनरल रमाकांत मिश्रा ने मामले पर विस्तृत उत्तर देने के लिए एक माह का समय मांगा, जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया। अगली सुनवाई 4 नवंबर 2025 को निर्धारित की गई है।

प्रक्रिया का पहला चरण पूरा 

सुनवाई में अदालत को बताया गया कि नियुक्ति प्रक्रिया का पहला चरण पूरा हो चुका है और दूसरा चरण वर्तमान में प्रगति पर है। हालांकि, केंद्र सरकार ने राज्य सरकार से कुछ बिंदुओं पर स्पष्टीकरण मांगा था, जिसका उत्तर अब तक प्राप्त नहीं हुआ है।

कोर्ट ने की महत्वपूर्ण टिप्पणी

खंडपीठ ने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य परीक्षकों की नियुक्ति कोई औपचारिकता नहीं, बल्कि डिजिटल साक्ष्यों की विश्वसनीयता सुनिश्चित करने का अनिवार्य कदम है। नियुक्ति में देरी सीधे साइबर अपराधों की जांच और न्यायिक निपटारे को प्रभावित करती है। कोर्ट ने संबंधित अधिकारियों को सभी औपचारिकताएं जल्द से जल्द पूरी करने का निर्देश दिया।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here