बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने चौथी श्रेणी में कलेक्टर दर पर पिछले 16-17 वर्षों से कार्यरत कर्मचारियों को नियमित नहीं करने और संशोधित वेतनमान नहीं देने की सरकारी कार्रवाई को अवैध करार दिया है। कोर्ट ने इस मामले में सरकार की भूमिका को निंदनीय बताते हुए याचिकाकर्ताओं के प्रकरण पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया है।

2008 में हुई थी नियुक्ति, सेवा पुस्तिका भी बनी

साल 2008 में वन मंडल अधिकारी द्वारा दुर्ग, राजनांदगांव, बालोद समेत अन्य जिलों में चौकीदार के रिक्त पदों के लिए कलेक्टर दर पर आवेदन आमंत्रित किए गए थे। लिखित परीक्षा और साक्षात्कार के बाद महेंद्र कुमार ठाकुर, प्रशांत रंगारी, भोजराज, पोषण कुमार, ममता जैसे याचिकाकर्ताओं की चपरासी पद पर नियुक्ति की गई। नियुक्ति के बाद उनकी सेवा पुस्तिका भी तैयार की गई थी।

अन्य जिलों में कर्मचारियों को मिला लाभ

राजनांदगांव और बस्तर में पशुपालन सहित अन्य विभागों में नियुक्त कर्मचारियों को नियमितकरण और संशोधित वेतनमान का लाभ दिया गया है। ऐसे में याचिकाकर्ताओं के मामले में भी यही नियम लागू होते हैं, बल्कि उनका मामला पहले से बेहतर स्थिति में है।

1984 के परिपत्र का लाभ नहीं दिया गया

सरकार का 10 मई 1984 का परिपत्र, जो पहले भी जारी किया गया था, उसी के तहत याचिकाकर्ताओं को लाभ मिलना था। परंतु इन चौथी श्रेणी के कर्मचारियों को जानबूझकर इससे वंचित रखा गया, जो अवैध है। कोर्ट ने माना कि 1975 के नियम और 1979 के पेंशन नियमों का उल्लंघन किया गया है। इस पर प्रशासन की निष्क्रियता को निंदनीय बताया गया है।

कोर्ट का आदेश

कोर्ट ने प्रतिवादी अधिकारियों को निर्देशित किया है कि चूंकि याचिकाकर्ता 16-17 वर्षों से सेवा में हैं, अतः उन्हें संशोधित वेतनमान का लाभ दिया जाए और उनके मामले पर संवेदनशीलता से विचार किया जाए।

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