-प्राण चड्ढा
मोहनभाटा, छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में स्थित एक अनोखा स्थान है, जो दूर देशों से आने वाले प्रवासी पक्षियों के लिए एक अस्थायी सराय बन चुका है। सावन और भादों के महीनों में, जब पक्षी अपनी लंबी यात्राओं पर निकलते हैं, तो वे कुछ लम्हों या कुछ दिनों के लिए इस स्थान पर ठहरते हैं।
सरकारी नक्शों के अनुसार, मोहनभाटा सेना की भूमि है, लेकिन इसका असली खजाना वह उथला बरसाती तालाब है, जो केवल दो हेक्टेयर में फैला हुआ है। यह तालाब पक्षियों का प्रिय ठिकाना बन गया है, लेकिन इस महत्वपूर्ण स्थल की देखरेख के लिए आज तक किसी सरकारी विभाग का कोई अधिकारी या कर्मचारी नहीं आया।
रंग लगे ना फिटकरी, फिर भी रंग चोखा
यह कहावत सटीक बैठती है, क्योंकि बिना किसी विशेष प्रयास के, यह स्थान पक्षियों को हर साल अपनी ओर खींचता है। हाल ही में, यहां 16 ‘यूरेशियन कर्लेव‘ पक्षी देखे गए। यह प्रजाति आमतौर पर भरतपुर के प्रसिद्ध केवलादेव पक्षी विहार में देखी जाती है। मैं कई बार केवलादेव गया हूं, पर वहां अब इतनी बड़ी संख्या में ये पक्षी नहीं दिखते।
इस मौसम में, इसके पहले ‘व्हिम्ब्रेल‘, ‘पैसिफिक गोल्डन प्लोवर‘, ‘रफ‘, ‘ओरिएंटल पेंटिकोल‘ और कुछ ‘सैंडपाइपर‘ प्रजातियों को भी यहां देखा गया है। स्थानीय पक्षियों में सफेद गिद्ध और दुर्लभ ‘इंडियन कोर्सर‘ की भी उपस्थिति दर्ज की गई है।
प्रवासी पक्षियों का आकर्षण
देसी पक्षी, जैसे कि सफेद गिद्ध और अन्य मांसाहारी पक्षी, अक्सर निकटवर्ती गौचर भूमि पर गोबर के कीटों या मवेशियों के शव का भक्षण करने आते हैं। लेकिन मोहनभाटा के इस छोटे से बरसाती तालाब में ऐसी क्या विशेषता है, जो प्रवासी पक्षियों को चुंबक की तरह आकर्षित करती है? यह प्रश्न आज भी विचारणीय है, पर पक्षियों की यह अनोखी उपस्थिति इस स्थान को अद्वितीय बनाती है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, व छत्तीसगढ़ तथा मध्यप्रदेश के वाइल्डलाइफ बोर्ड के पूर्व सदस्य हैं)