बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा की जमानत याचिका को दूसरी बार खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि उन पर गंभीर आर्थिक अपराध से जुड़े आरोप हैं और जांच अभी जारी है। इस स्थिति में जमानत मिलने पर सबूतों से छेड़छाड़ और गवाहों को प्रभावित करने की आशंका बनी रहती है।

लखमा को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने 15 जनवरी  को गिरफ्तार किया था। वे फिलहाल रायपुर सेंट्रल जेल में बंद हैं। इससे पहले भी 18 जुलाई को हाईकोर्ट उनकी जमानत याचिका खारिज कर चुका है। शुक्रवार को न्यायमूर्ति अरविन्द वर्मा की एकलपीठ ने सुनवाई के बाद फिर से जमानत से इंकार कर दिया।

ईडी का आरोप है कि 2019 से 2023 तक कवासी लखमा ने एफएल-10ए लाइसेंस नीति लागू की, जिससे अवैध शराब कारोबार को बढ़ावा मिला। एजेंसी का दावा है कि शराब सिंडिकेट से उन्हें हर महीने लगभग दो करोड़ रुपए मिलते थे और इस तरह करीब 72 करोड़ रुपए की अवैध कमाई हुई।

वहीं लखमा ने अदालत में तर्क दिया कि यह पूरा मामला राजनीतिक साजिश का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि आरोप सह-अभियुक्तों के बयानों पर आधारित हैं और कोई ठोस सबूत मौजूद नहीं है। उनका कहना था कि जांच पूरी हो चुकी है और चार्जशीट भी दाखिल कर दी गई है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि केस दर्ज होने के डेढ़ साल बाद उनकी गिरफ्तारी की गई, जो न्यायोचित नहीं है।

लखमा के वकील ने यह भी दलील दी कि सह-अभियुक्त अरुणपति त्रिपाठी, त्रिलोक सिंह ढिल्लन, अनिल टुटेजा और अरविंद सिंह को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल चुकी है, इसलिए लखमा को भी राहत दी जानी चाहिए। लेकिन ईडी ने कड़ा विरोध करते हुए कहा कि इस पूरे मामले में उनकी भूमिका मुख्य रही है और रिहाई मिलने पर जांच प्रभावित हो सकती है। हाईकोर्ट ने इस दलील से सहमति जताते हुए जमानत याचिका खारिज कर दी।

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