हसदेव के बाद रायगढ़ के जंगलों में शुरू हुई पर्यावरण बचाने की लड़ाई
Blive digital desk
छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के तमनार तहसील में जंगलों की कटाई को लेकर जन-आंदोलन खड़ा हो गया है। हसदेव के बाद अब मुड़ागांव और सरायटोला गांवों में हजारों पेड़ों की बलि से एक बार फिर सवाल उठा है,आखिर विकास किस कीमत पर?
क्या हुआ 26 और 27 जून को?
26 और 27 जून को महाराष्ट्र राज्य विद्युत उत्पादन कंपनी लिमिटेड (महाजेनको) द्वारा संचालित गारे पेलमा सेक्टर II कोल ब्लॉक में करीब 5,000 पेड़ काटे गए। इस कटाई का विरोध करने पहुंचे ग्रामीणों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और जनप्रतिनिधियों को रोकने के लिए प्रशासन ने करीब 2,000 पुलिसकर्मियों की तैनाती की।
कांग्रेस विधायक विद्यावती सिदार, पूर्व भाजपा विधायक सत्यनंद राठिया और कई ग्रामीणों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया। पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL) और छत्तीसगढ़ एसोसिएशन फॉर जस्टिस एंड इक्वैलिटी (CAJE) ने इस कार्रवाई की आलोचना करते हुए कहा कि शांतिपूर्ण विरोध कर रहे लोगों को गैरकानूनी तरीके से रोका गया।
पर्यावरणीय चिंता और विरोध की ताकत
स्थानीय लोगों और कार्यकर्ताओं का कहना है कि पेड़ों की कटाई ग्राम सभा की सहमति के बिना की गई है, जो कि पर्यावरणीय नियमों का सीधा उल्लंघन है। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो और पोस्ट्स में देखा गया कि एक ही दिन में 1,500 से ज्यादा पेड़ गिरा दिए गए। विरोध में एक ग्रामीण ने कटे हुए पेड़ के पास पौधा लगाकर संदेश दिया – “हम जंगल नहीं देंगे।”
कोयला ब्लॉक और अडानी समूह की भूमिका
गारे पेलमा सेक्टर II कोल ब्लॉक महाजेनको को 2024 में आवंटित किया गया था, लेकिन इसका प्रबंधन अडानी समूह कर रहा है। परियोजना के तहत 14 गांवों और 9 ग्राम पंचायतों की जमीन प्रभावित होनी है। यहां की कुल आबादी लगभग 9,500 है।
पर्यावरणविद् राजेश त्रिपाठी कहते हैं, “यह दुर्भाग्यजनक है कि एक ओर राज्य सरकार पर्यावरण संरक्षण की बात करती है और दूसरी ओर हजारों पेड़ों की कटाई को अनुमति देती है।”
कानूनी पेंच और जनहित याचिकाएं
इस परियोजना को लेकर छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय और राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) में याचिकाएं दायर हैं। कार्यकर्ताओं का दावा है कि NGT के आदेशों की अनदेखी कर कटाई की जा रही है। इसके अतिरिक्त, पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL) ने 26 जून को कम से कम 10 लोगों की मनमानी हिरासत की निंदा की।
कुछ पोस्ट्स में यह दावा भी किया गया कि NGT द्वारा दी गई सशर्त पर्यावरणीय मंजूरी के बावजूद, ग्राम सभा की साफ-साफ सहमति नहीं ली गई, और वन अधिकार कानूनों की भी अनदेखी की गई। इस बात की स्वतंत्र जांच की मांग की जा रही है।
प्रभावित समुदाय और पर्यावरणीय जोखिम
रायगढ़ के जंगल जैव विविधता से भरपूर हैं और यहाँ के ग्रामीण जंगल पर निर्भर रहते हैं। जल, लकड़ी, फल-फूल, जड़ी-बूटी और मवेशियों के चारे के लिए। बड़े पैमाने पर वनों की कटाई से न केवल पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचेगा, बल्कि हजारों परिवारों की आजीविका भी खतरे में पड़ जाएगी।
एक स्थानीय महिला कहती है, “हमें विकास नहीं, हमारे जंगल चाहिए। सरकार हमारी जमीन ले गई, अब हमारे पेड़ भी ले रही है।”
विरोध के नए प्रतीक: पौधारोपण और सोशल मीडिया
27 जून को एक ग्रामीण द्वारा कटे हुए पेड़ के पास पौधा रोपना सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। यह तस्वीर अब इस आंदोलन का प्रतीक बन चुकी है। ट्विटर (X) पर @alokshuklacg, @HansrajMeena, @Deveshtiwari_, @yogeshyadav7798 जैसे कई एक्टिविस्ट्स ने इस विरोध को देशभर में फैलाया है।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं और आरोप-प्रत्यारोप
विपक्षी दलों ने इस मुद्दे को तुरंत लपक लिया। कांग्रेस ने इसे ‘लोकतंत्र की हत्या’ कहा तो बीजेपी के भीतर से भी पूर्व विधायक सत्यानंद राठिया ने प्रशासन की कार्रवाई की आलोचना की।
राज्य सरकार का कहना है कि यह परियोजना पूर्ववर्ती सरकार के कार्यकाल में मंजूर हुई थी और सभी कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किया गया है। हालांकि, पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी और स्थानीय सहमति में अंतर को लेकर बहस जारी है।
यह सिर्फ पेड़ों की बात नहीं
छत्तीसगढ़ के आदिवासी और ग्रामीण क्षेत्रों में खनन, उद्योग और बुनियादी ढांचे के नाम पर भूमि अधिग्रहण और वन कटाई की घटनाएं लगातार हो रही हैं। इससे प्रभावित समुदायों का कहना है कि उनकी आवाज को अनसुना किया जा रहा है।
रायगढ़ में हुई ताजा घटना इसी लंबी श्रृंखला का हिस्सा है, जिसमें स्थानीय जनता अपनी जमीन, जंगल और अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है।
एक और हसदेव की शुरुआत?
26-27 जून 2025 को रायगढ़ में हुई पेड़ों की कटाई और उसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन छत्तीसगढ़ में औद्योगिक विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच गहराते संघर्ष को उजागर करते हैं। हसदेव के जंगल को बचाने के लिए निरंतर संघर्ष जारी है। अब यह टकराव केवल पेड़ों का नहीं, बल्कि संविधान प्रदत्त अधिकारों, ग्राम सभा की संप्रभुता और टिकाऊ विकास के मॉडल का संघर्ष है। यह संघर्ष छत्तीसगढ़ के पर्यावरणीय भविष्य और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की साख की परीक्षा बन चुका है।
(इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए– द टाइम्स ऑफ इंडिया, 26 जून 2025 • द वायर, 27 जून 2025 • डूल न्यूज, 28 जून 2025 • स्वदेश न्यूज, 27 जून 2025 • INH न्यूज, 26 जून 2025 • X पोस्ट्स: @ZeeMPCG, @IBC24News, @alokshuklacg, @yogeshyadav7798, @Deveshtiwari_, @HansrajMeena से तथ्य व अंश लिए गए हैं।)